राकेश दुबे@प्रतिदिन। प्रधानमन्त्री दुखी हैं| उन्हें आपत्ति है की प्रतिपक्षी सांसदों ने उन्हें संसद के गर्भगृह में “चोर” कहा| पलट कर राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने संसद विश्वास के मत जीतने के लिए सांसदों की खरीद-फरोख्त का आरोप दोहरा दिया|
विधायिका अपने बारे में कुछ कहना सुनना पसंद नहीं कर रही है इन दिनों| चाहे देश का उच्चतम न्यायालय ही क्यों न कहे| सब एक हो जाते हैं ऐसे मुद्दों पर क्या ऐसा पक्ष और ऐसा प्रतिपक्ष राष्ट्र को दिशा दे पायेगा ? बड़ा सवाल है|
भारत की संसद जिन दिनों केन्द्रीय सूचना आयोग और उच्चततम न्यायालय के निर्णय को पलट रही थी, तब देश में दो घटनाये एक साथ घटी| १.मध्यप्रदेश के एक मंत्री की घिनौने कृत्य में गिरफ्तारी २.उत्तर प्रदेश के एक विधायक की साथियों सहित गोवा में गिरफ्तारी | दादागिरी, गुंडागिरी और अन्य के छोटे बड़े अपराध के तमगे लगाये जन प्रतिनिधि तो लगभग प्रत्येक सदन में मौजूदा है |
ऐसे महानुभावों के शब्दकोश में “चोर” तो अत्यंत छोटा शब्द है | किसी भी सदन का रिकार्ड उठा कर देखें जाने कितने विलोपन नोट मिलेंगे| संविधान ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है , पर उल्लंघन की कार्रवाई से विधायिका के सदस्य बच निकलते है | यह मत भूलिये जनप्रतिनिधियों, आपको जनता देखती है और आपको चुनने पर दुखी है|
