अपनी नहीं देश की “टोपी” संभालो

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राकेश दुबे@प्रतिदिन। पाकिस्तानी हमले के बाद और फिर  हाफिज सईद के अलर्ट के बाद देश की टोपी देश-विदेश में उछल रही है और देश के नेता अभिनेता एक दूसरे की टोपी उछाल रहे हैं | किसी ने टोपी पहनी, किसी ने टोपी नहीं पहनी,इससे कोई अंतर नहीं पड़ेगा |लेकिन रोज़-रोज़ सीमा पर शहीद होते जवान और सरकार की  यह चुप्पी उन सिरों को जरुर झुका देगी | जो 2014 में अपने सिर ताज {टोपी} के सपने देख रहे हैं |

पगड़ी पहनने वाले एक दोस्त ने मजे लेने के लिए पूछा टोपी का इतिहास क्या है ? भारत की सामान्य परम्परा है टोपी | गमछे से लेकर साफा और ताज तक टोपी के स्वरूप बदलते है | अर्थ है सामान्य शिष्टाचार और आदर | टोपी को धर्मनिरपेक्षता के साथ जोड़ने वाले कुछ ज्यादा समझदार है, उन्हें उनकी समझदारी मुबारक | भारत में पूजा और नमाज़ सिर को ढक कर करने की परम्परा है | बाज़ार में यह साख का प्रतीक रही है और कहीं-कहीं अब भी है |खासकर वैश्यों में |

देश की टोपी से मायने देश की इज्जत है | टोपी पर बात करनेवाले कभी यह सोचे की देश की टोपी बचाने में उनका क्या योगदान है?  देश की टोपी अशिक्षा,गरीबी,  भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण से उछलती है | मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री के ताज पर कोई भी टोपी कैसे जचेंगी ? सोचिये | फ़िल्मी एक्टरों की बात छोडिये, वे तो एक पर एक  टोपी पहनकर जनता को हंसाते रहते है, बेचारे |


  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं।
  • संपर्क  9425022703
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