भोपाल। मध्यप्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने धर्मांतरण के खिलाफ मौजूदा क़ानून में संशोधन कर उसे और ज्यादा सख़्त कर दिया है। नए संशोधन के बाद जबरन धर्म परिवर्तन पर जुर्माने की रकम दस गुना तक बढ़ा दी गई है और कारावास की अवधि भी एक से बढ़ाकर चार साल तक कर दी गई है।
यही नहीं अब धर्म परिवर्तन से पहले जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति भी आवश्यक कर दी गई है। राज्य विधानसभा ने बुधवार को ध्वनि मत से कानून में बदलाव को अपनी मंजूरी दे दी। राज्य का ईसाई समुदाय सरकार के इस फैसले से नाराज है। उनका कहना है यह व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है।
गौरतलब है कि भाजपा सरकार ने 2006 में भी एक बार धर्मांतरण विरोधी बिल में संशोधन किया था, लेकिन राष्ट्रपति ने उसे मंजूरी नहीं दी थी। लगभग सात साल बाद दोबारा लाया गया संशोधन बिल पिछले बिल के मुक़ाबले ज्यादा सख़्त है।
2006 में मध्यप्रदेश विधानसभा ने जो बिल पारित किया था उसमें प्रलोभन या जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने की स्थिति में एक साल की जेल और पाँच हजार रूपये जुर्माने का प्रावधान था।
अनुसूचित जाति जनजाति या महिला के मामले में तब दो साल का दंड और दस हजार रूपये के जुर्मान का प्रावधान किया गया था। राज्य के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता कहते हैं कि हमने गुजरात की तर्ज पर बिल बनाया है। वहाँ सरकार इसे लागू कर चुकी है।
सात साल बाद लाए गए नए संशोधन बिल में तीन साल की जेल और पचास हजार रूपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है। महिला, अनुसूचित जाति, जनजाति के मामले में जेल की अवधि चार साल और जुर्माना की रकम को एक लाख कर दिया गया है।
पिछले 45 सालों से राज्य में जो धर्म स्वातंत्रय अधिनियम 1968 अस्तित्व में हैं उसमें धर्म परिवर्तन से पहले जिला मजिस्ट्रेट से लिखित में अनुमति लेने की कोई जरूरत नहीं होती थी। कानून में यह प्रावधान था कि धर्म परिर्वतन के एक माह के भीतर प्रशासन को इसकी सूचना देनी होगी।
संशोधन में न सिर्फ धर्म परिवर्तन करने वाले बल्कि परिवर्तन कराने वाले धार्मिक पुरोहितों के लिए भी यह आवश्यक कर दिया गया है कि उन्हें जिला मजिस्ट्रेट से इसकी लिखित में अनुमति लेना होगी।
यदि धर्मांतरण करने वाला या कराने वाला ऐसा नहीं करता है तो वह दंड का भागीदार होगा. इसके लिए एक वर्ष तक के कारावास और एक हजार रूपये के जुर्माने का प्रावधान संशोधन विधेयक में किया गया है. यानि अब धर्म गुरू भी क़ानून के दायरे में आ गए हैं।
राज्य का ईसाई समुदाय भाजपा सरकार द्वारा लाए गए इस संशोधन विधेयक से नाराज है. उनकी नाराजगी भाजपा के साथ साथ विपक्षी दल कांग्रेस से भी है. मध्यप्रदेश क्रिश्चियन एसोसिएशन के वाईस चेयरपर्सन फादर अनिल मार्टिन को इस बात का दुख है कि विधानसभा में विपक्ष ने अपनी भूमिका का सही तरीके से निर्वाह नहीं किया।
यह महत्वपूर्ण विधेयक विधानसभा में मात्र बीस मिनट में ध्वनि मत से पारित हो गया. कांग्रेस से महज तीन विधायक विरोध में बोलने को खड़े हुए. विधायक आरिफ अक़ील ने विधानसभा में अपने दो मिनट के भाषण में कहा कि यह राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ या आरएसएस के इशारे पर हो रहा है।
उन्होंने आरएसएस के पथ संचलनों पर भी प्रतिबंध की मांग की. भारी हंगामे के बीच गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने अकील के आरोप नकार दिए. हंगामा, विधेयक के विरोध में नही, बल्कि विधानसभा अध्यक्ष ईश्वर दास रोहाणी द्वारा फटाफट कार्यवाही निबटाए जाने पर था।
कांग्रेस को शक है कि विधानसभा अध्यक्ष जल्दी-जल्दी कार्यवाही निबटा कर पावस सत्र शुक्रवार को खत्म करना चाहते हैं. कांग्रेस के हंगामे के बीच उमाशंकर गुप्ता ने क्या भाषण दिया न स्पीकर सुन पाए न कोई विधायक, और यह बिल पारित हो गया।
अनिल मार्टिन सवाल करते हैं कि जब एक बार राष्ट्रपति इस संशोधन विधेयक को नामंजूर कर चुके तब दोबारा लाने का क्या मकसद है? बिल को धार्मिक आजादी के खिलाफ़ बताते हुए उन्होंने न्यायालय जाने की बात भी कही.
दूसरी तरफ कैथोलिक चर्च भोपाल के प्रवक्ता फादर जॉनी का कहना है कि यह अल्पसंख्यक समुदाय पर दमन है. इस कानून को गैर जमानतीय बनाकर सरकार हमें सताना चाह रही है।
उन्होंने बताया कि इस सिलसिले में बुधवार को अल्पसंख्यक समुदाय से जुडे सभी धर्मो के गुरूओं ने राज्यपाल से मुलाकात कर इस बिल को मंजूरी नहीं देने का अनुरोध किया है. वहीं राज्य के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता की माने तो अब प्रलोभन के जरिए भोले भाले लोगो का धर्मांतरण रूकेगा. वे इसे संघ का एजेंडा मानने को राजी नही है।