हम इशरत-इशरत कर रहे हैं, और वो धमाके

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राकेश दुबे@प्रतिदिन। केंद्र की सरकार और बिहार की सरकार को मालूम था की बौद्ध गया में  कुछ होगा| इस बार आईबी और सीबीआई का झगड़ा भी नहीं था| अलर्ट में भी नाम साफ-साफ लिखा था| दोनों सरकारों का ध्यान अलर्ट से ज्यादा इशरत कांड पर था|

कोई उसे बेटी बता रहा है, तो किसी संगठन को दवाब में यह कहना पड़ रहा है कि “हम तो सीबीआई है आईबी की आईबी जाने |” 9 धमाकों ने बुद्ध की ज्ञान स्थली को नहीं हिलाया उस विश्वास को हिलाया है, जो बौद्ध दर्शन के रूप में भारत से ज्यादा विश्व के अन्य भागों में फैला है|

आतंकवादी संगठन, उनका कोई भी नाम हो सकता है जैसे- अल कायदा, इंडियन मुजाहिदीन,लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद पर काम सबके एक है भारत में अस्थिरता| साम्प्रदायिक तालमेल को बिगाड़ना| दुर्भाग्य से भारत के राजनीतिग्य अपनी राजनीति चमकाने और कथित वोट बैंक के लालच में वह सब कह और कर बैठते हैं, जो देश के लिए ठीक नहीं होता| नाम जैसा काम और काम जैसा नाम रखने की परम्परा तो अब लुप्त हो गई है| उदहारण के तौर राघव से अर्थ लोग मध्यप्रदेश के हालही में भूतपूर्व हुए मंत्री से लेते है, इशरत का अर्थ पारिवारिक होता है| अब नाम के मायने खो रहे हैं|

बौद्ध गया के बाद कुछ और भी अलर्ट हैं| सरकारें एक दूसरे को नीचा दिखाने के स्थान पर देश का नाम ऊँचा उठानेवाले कार्य करे तो ज्यादा अच्छा होगा| विदेशों में हमारी छबि दिनोंदिन खराब हो रही है| देश के खिलाफ खड़ी ताकतों के खिलाफ एक हो जाएँ, नहीं तो हम फिर 1947 के पहले ही नहीं उसके भी और पहले पहुंच जायेंगे|

  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं। 
  • संपर्क  9425022703 
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