म.प्र. के सरकारी स्कूलों में विकलांग बच्चों की शिक्षा भगवान भरोसे चल रही है। विदित हो कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार और भारतीय पुनर्वास परिषद् नई दिल्ली द्वारा निःशक्त बच्चों की शिक्षा संबंधी जो निर्देश दिए गये है।
उसमें निःशक्त बच्चों को केवल विशेष शिक्षित व प्रशिक्षित व्यक्ति या शिक्षक जिसने विकलांगता या विशेष शिक्षा के क्षेत्र में दो वर्षीय बी.एड. व डी.एड. किया हो वही इन बच्चों को पढा सकता है, लेकिन मप्र में इन बच्चों को सामान्य शिक्षक ही पढा रहे है या फिर मोबाईल स्त्रोत सलाहकार (एम.आर.सी) जो कि एक भ्रमणशील शिक्षक होता है पढा रहे है, जबकि इनको पढाने के लिए स्थायी तौर पर विशेष शिक्षक स्कूल में होना चाहिए।
निःषक्त बच्चों की षिक्षा एवं मागदर्षन हेतु एक मोबाईल स्त्रोत सलाहकार की नियुक्ति विकासखण्ड स्तर पर की गई है और विकासखण्ड में लगभग 300 स्कूलें होती है। एक दिन में वह इतनी स्कूलो का भ्रमण नही कर पाता है साथ ही उसे निःशक्त बच्चों की अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन संबंधी कार्य भी करना पडता है।
विदित हो कि वर्ष 2012 के आकडो के अनुसार 1,20,960 नि:शक्त बच्चे म.प्र. की सरकारी स्कूलों में दर्ज है लेकिन इन्हे शिक्षा देने के लिए एक भी स्थायी (विशेष शिक्षक) किसी स्कूल में कार्यरत नही है और हर वर्ष इन बच्चों की संख्या बढती ही जा रही है, लेकिन म.प्र. शासन जितना सामान्य बच्चों की शिक्षा पर ध्यान दे रहा है उतना निःषक्त बच्चों की शिक्षा पर नही।
इस हेतु उसे सरकारी स्कूलों में स्थायी तौर पर विशेष शिक्षकों को नियुक्त करना चाहिए जो इन बच्चों को ठीक से समझ सकें और उन्हे अच्छी शिक्षा दे सकें। शिक्षा का अधिकार सिर्फ सामान्य बच्चों को नही बल्कि विकलांग बच्चों को भी है अतः शासन को इस दिशा में जल्दी कोई कदम उठाना चाहिए ताकि निःशक्त बच्चों को भी अच्छी शिक्षा मिल सके और वह अपने परिवार या समाज पर बोझ न बनकर स्वयं आत्मनिर्भर बन सकें।