भोपाल। भाजपा के प्रवक्ता रामेश्वर शर्मा ने राधौगढ़ को लंका और दिग्विजय सिंह को रावण का चरित्र पालन करने वाला व्यक्ति निरूपित किया है। उन्होंने कहा है कि राधौगढ़ में मंदिरों की श्रंखला है तो क्या, वो तो रावण के घर में भी थी, परंतु जिसकी प्रवृत्ति राक्षसी हो उसपर इंसान भरोसा कैसे करें।
सनद रहे कि 'बच्चा बच्चा राम का, राघवजी के काम का' ट्विट करने के बाद से ही दिग्विजय सिंह ना केवल संघ समर्थक संगठनों बल्कि सामान्य एवं कांग्रेस में मौजूद हिन्दुओं व क्षत्रियों के टारगेट पर भी आ गए हैं। अब तो दिग्गी को भी समझ में आ गया है कि भगवान श्रीराम का नाम, राघवजी जैसे लोगों के काम के साथ जोड़ना कतई उचित नहीं था और क्षत्रिय होने के नाते उन्होंने यह एक गंभीर अपराध किया है। ना केवल आस्थावादियों के प्रति बल्कि क्षत्रिय समाज के प्रति भी।
इसी के चलते उन्हें अपने ब्लॉग में धार्मिक आस्थाएं प्रचारित करनी पड़ीं। इसी ब्लॉग पर प्रतिक्रिया स्वरूप भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता रामेष्वर शर्मा ने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के ब्लाग को हास्यास्पद बताते हुए कहा कि उनका वक्तव्य जनविश्वास बटोरने में सफल नहीं होगा।
राघोगढ़ में मंदिरों की श्रृंखला और अखण्ड पूजा अर्चना का उल्लेख करते हुए दिग्विजय सिंह ने खुद अपना मजाक उड़ाया है, क्योंकि सवाल यहां मंदिर और पूजा अर्चना ही नहीं एक विशेष प्रवृत्ति की है।
रामेश्वर शर्मा ने कहा कि बात बात में हिन्दूओं को शंका की दृष्टि से देखकर दिग्विजय सिंह ने अपनी प्रवृत्ति का परिचय दिया है। यही कारण है कि उन्होंने स्वयं अपने हिन्दुत्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। उन्होंने कहा लंका में भी मंदिरों की श्रृंखला थी। लंकापति जैसा साधक तो कदाचित कोई हुआ नहीं लेकिन फिर भी उनकी प्रवृत्ति को राक्षसी प्रवृत्ति कहने में किसी को संकोच नहीं होता, क्योंकि लंकेश ने हमेशा सात्विक प्रवृत्ति को प्रताड़ित किया।
ऋषि मुनि और सात्विक साधक साधु संत कभी चैन से नहीं रहने पाए यही लंकेश का शगल था। भारत में हिन्दुओं के प्रति दिग्विजय सिंह का असम्मान का भाव छिपा नहीं है, क्योंकि हिन्दुओं को पांखडी बताने में उन्होंने कभी संकोच नहीं किया।
उनका जो स्पष्टीकरण आया है उसमें भी सात्विकता की जगत अंहकार और गर्व है जो उनकी प्रवृत्ति का प्रतीक है। दिग्विजय सिंह आतंकवादी घटना के साथ ही आतंकवादी घटना में मारे गए आतंकवादियों के प्रति द्रवित हो जाते है। उनके परिवारों में पहुंचकर मातम भी मनाते, लेकिन आतंकवाद का मुकाबला करने वाले शहीदों के लिए उनकी आंखे कभी नम नहीं होती। उल्टे सुरक्षा बलों के दावे को चुनौती देकर घटना की जांच की मांग करते है।
