भोपाल। पिछले 15 सालों में जब-जब विधानसभा चुनाव हुए, उससे ठीक पहले अवैध कॉलोनियों को वैध करने की कवायद हुई। इसके चलते हर बार अवैध कॉलोनियों के सर्वे की नई तारीख भी घोषित की जाती है, मगर अब तक प्रदेश में कोई भी अवैध कॉलोनी वैध नहीं हो सकी। बस सरकार की सूची में अवैध कॉलोनियों की संख्या जरूर बढ़ जाती है।
इस बार भी आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए वर्ष 2012 तक की अवैध कॉलोनियों को वैध करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। मगर संशय बरकरार है कि इनमें कितनी कॉलोनियां वैध हो पाएंगी?
वर्ष 1998 में 11वीं विधानसभा चुनाव के वक्त भी तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सबसे पहले अवैध कॉलोनियों को वैध करने का ऐलान किया था। इसके बाद वर्ष 2003 में 12वीं विधानसभा चुनाव के लिए भी ऐसा ही हुआ। इसके तहत साल 2002 तक की अवैध कॉलोनियों की सूची बनाई गई। चुनाव के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
फिर साल 2008 के विधानसभा चुनाव के लिए 2007 तक की अवैध कॉलोनियों को वैध करने का ऐलान किया गया। चुनाव के बाद से अब तक इस पर करीब 15 बैठकें हो चुकी हैं। कई अड़चनों के बाद भी सिर्फ साल 2007 तक की कॉलोनियों की सूची तैयार हो पाई है। इसी बीच फिर से दिसंबर 2012 तक वजूद में आई कॉलोनियों को भी इसमें शामिल करने का निर्णय ले लिया गया है।
लिहाजा, अब फिर से सर्वे होगा, जिसमें कम से कम एक साल लगेगा। यानी नवंबर 2013 में विधानसभा चुनाव के बाद आने वाली नई सरकार ही अवैध कॉलोनियों को वैध कर पाएगी।
सरकारी जमीन पर बनी कॉलोनियों पर नहीं हो पाया फैसला
अवैध को वैध करने में सबसे बड़ी अड़चन सरकारी जमीन पर बनी कॉलोनियों की है। सरकार ने फिलहाल राजस्व विभाग से इस संबंध में अलग कार्रवाई होने की बात कह कर इसे टाल दिया है।
इसलिए बच गए अवैध कॉलोनी काटने वाले
अवैध कॉलोनी आबाद करने वाले कॉलोनाइजर के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान नहीं किया गया है। इसके लिए 10 हजार रुपए जुर्माना या सजा का प्रावधान है। ऐसी स्थिति में कॉलोनाइजर जुर्माना देकर बरी हो गए, जबकि शासन स्तर पर सुझाव दिया गया था कि 10 हजार जुर्माने के साथ सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ।
इस कारण अवैध होती हैं कॉलोनियां
टीएंडसीपी से कॉलोनी के ले-आउट की मंजूरी नहीं लेना। श्मास्टर प्लान के उल्लंघन यानी ग्रीन बेल्ट, सड़क, तालाब, जल स्त्रोत, हाइवे और राजस्व जमीन पर निर्माण किया जाना। बिना डायवर्जन की अनुमति के प्लाटिंग करना। नगर निगम से विकास की अनुमति के बिना निर्माण कराना।
मिल रही है परमिशन
नगर निगम के मुताबिक वर्ष 2002 में 198 कॉलोनियां अवैध घोषित हुई थीं। इन्हें भले ही वैध नहीं किया गया है, लेकिन इनमें लोगों को बिल्डिंग परमिशन मिलने लगी है। साथ ही विभिन्न योजनाओं के तहत विकास कार्य भी कराए गए हैं।
कॉलोनियों को वैध करना आसान क्यों नहीं
कॉलोनाइजर्स रुल्स में प्रावधान है कि जब तक कॉलोनी के सभी लोग विकास शुल्क जमा नहीं करें, तब तक उसे वैध का सर्टिफिकेट नहीं दिया जाएगा। वहीं, कहीं सड़क छह मीटर से कम चौड़ी है और कहीं बिल्कुल भी ओपन स्पेस नहीं है। अधिकांश कॉलोनियों में ऐसी स्थिति है, इस कारण कोई भी कॉलोनी वैध नहीं हुई है।
क्या फायदा होगा
कॉलोनियों को वैध करने से विकास कार्य शुरू हो जाएंगे। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार का फंड मिलेगा। इसके साथ ही लोगों को बिल्डिंग परमिशन, लोन और नामांतरण आदि में दिक्कत नहीं आएगी।
यह बहुत पेचीदा मामला है। अवैध को वैध करने में कई अड़चनें आती हैं, इसलिए सरकार को ज्यादा वक्त लगा, पर अब सब कुछ साफ है। कैबिनेट के नए फैसले से जल्द ही कॉलोनियां वैध होंगी।
बाबूलाल गौर, मंत्री, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग
कैसे होगा सर्वे
रहवासियों के बिजली बिल, रजिस्ट्री दस्तावेज आदि की जांच कर कॉलोनी के निर्माण की तारीख वर्ष 2012 तक होना सुनिश्चित किया जाएगा। यदि कॉलोनी सरकारी जमीन पर नहीं बनी है तो यह देखा जाएगा कि अवैध कॉलोनी में 10 प्रतिशत प्लॉट पर मकान बने हैं या नहीं। यदि बने हैं तो उसका एक नक्शा तैयार होगा, जिसमें रोड की चौड़ाई, ओपन स्पेस आदि की जानकारी रहेगी। इसके बाद रहवासियों को विकास लागत का 50 फीसदी जमा करना होगा, फिर एमआईसी और परिषद की बैठक के बाद वैध करने की मंजूरी मिलेगी।
निकाला रास्ता दिक्कतों को दूर करने के लिए नियमों को किया शिथिल
इस बार कॉलोनियों को वैध करने में आ रहीं दिक्कतों को दूर करने के लिए मापदंड शिथिल किए गए हैं। अब कॉलोनी के मापदंड ईडब्ल्यूएस/एलआईजी वाले होंगे। यानी सड़क की चौड़ाई छह मीटर से कम भी होगी तो वह मान्य होगी। ग्राउंड कवरेज भी 50 के बजाए 75 फीसदी मिलेगा। वहीं, अवैध कॉलोनी में विकास शुल्क 150 रुपए वर्गमीटर से अधिक होने अथवा सभी रहवासियों से राशि प्राप्त नहीं होने पर सांसद-विधायक निधि से गैप फंडिंग की अनुमति होगी। साथ ही महज 50 फीसदी राशि लोगों या रहवासियों को जमा करनी होगी। बाकी राशि राज्य सरकार और नगर निगम देगा। सार्वजनिक सुविधाओं के लिए आवश्यक 10 प्रतिशत जमीन उपलब्ध नहीं होने पर समझौता शुल्क नगर निगम में मेयर इन काउंसिल (एमआईसी) तथा नगर पालिकाओं व नगर पंचायतों की परिषद (पीआईसी) द्वारा तय किया जाएगा।