भोपाल। क्या आपने दिग्विजय सिंह को देखा है, क्या आपने दिग्विजय सिंह को मंदिर में देखा है और क्या आपने मंदिर में अर्चना करते दिग्विजय सिंह का फोटो देखा है। जी हां, हिन्दुओं के सीधे टारगेट पर आए दिग्विजय सिंह ने इस बार पंढरपुर विट्ठल भगवान की अर्चना करते अपना फोटो मीडिया तक पहुंचवाया है।
देवशयनी एकादशी के अवसर पर महाराष्ट्र के सीएम पृथ्वीराज सिंह के साथ दिग्विजय सिंह भी पंढरपुर पहुंचे। यहां उन्होंने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि फोटोग्राफ्स में सीएम के साथ उनका चेहरा भी दिखाई दे जाए। इससे पूर्व तक दिग्विजय सिंह अक्सर मंदिरों में अपनी फोटोग्राफी से परहेज किया करते थे और पूजा अर्चना को नितांत व्यक्तिगत विषय बताते थे।
लेकिन 'बच्चा बच्चा राम का, राघवजी के काम का' ट्विट करने के बाद से ही दिग्विजय सिंह खुद को आस्थावादी हिन्दू और धर्मपारायण नेता के रूप में प्रस्तुत करने में लगे हुए हैं ताकि डैमेज कंट्रोल किया जा सके। हमारा मानना है कि यह फोटो भी इसी प्रक्रिया का एक हिस्सा है।
पंढरपुर के भगवान भगवान विट्ठल जी की कथा
पंढरपुर महाराष्ट्र का एक सुविख्यात तीर्थस्थान है। भीमा नदी के तट पर बसा यह तीर्थस्थल शोलापुर जिले में अवस्थित है। आसाढ़ के महीने में यहां करीब 5 लाख से ज्यादा हिंदू श्रद्धालु प्रसिद्ध पंढरपुर यात्रा में भाग लेने पहुंचते हैं।इस बार यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यह संख्या तक़रीबन 8-9 लाख पहुंच गई है।
भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से पताका-डिंडी लेकर इस तीर्थस्थल पर पैदल चलकर लोग यहां इकट्ठा होते हैं। इस यात्रा क्रम में कुछ लोग अलंडि में जमा होते हैं और पूना तथा जजूरी होते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं। इनको ज्ञानदेव माउली की डिंडी के नाम से दिंडी जाना जाता है।
भीमा नदी को यहां चंद्रभागा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां इसका आकार अर्ध चंद्र जैसा है। इस शहर का नाम एक व्यापारी पंडारिका के नाम पर पड़ा है।
पंढरपुर को पंढारी के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान विट्ठल का विश्व विख्यात मंदिर है। भगवान विट्ठल को हिंदू श्री कृष्ण का एक रूप मानते हैं। भगवान विट्ठल विष्णु अवतार कहे जाते हैं। इस मंदिर में देवी रुक्मिणी को भगवान विट्ठल के साथ स्थापित किया गया है। भगवान विट्ठल को विट्ठोबा, पांडुरंग, पंढरिनाथ के नाम से भी जाना जाता है।
प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों लोग भगवान विट्ठल और रुक्मिणी की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं। इस अवसर पर राज्यभर से लोग पैदल ही चलकर मंदिर नगरी पहुंचते हैं।
हिंदूओं के इस विशेष स्थल पर प्रत्येक साल चार त्यौहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। ये सभी त्यौहार यात्राओं के रूप में मनाए जाते हैं। इनमें सबसे ज्यादा श्रद्धालु आसाढ़ के महीने में एकत्रित होते हैं जबकि इसके बाद क्रमशः कार्तिक, माघ और श्रावण महीने की यात्राओं में सबसे ज्यादा तीर्थयात्री एकत्रित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये यात्राएं पिछले 800 सालों से लगातार आयोजित की जाती रही हैं।
लगभग 1000 साल पुरानी पालखी परंपरा की शुरुआत महाराष्ट्र के कुछ प्रसिद्ध संतों ने की थी. उनके अनुयायियों को वारकारी कहा जाता है जिन्होंने इस प्रथा को जीवित रखा। पालखी के बाद डिंडी होता है। वारकारियों का एक सुसंगठित दल इस दौरान नृत्य, कीर्तन के माध्यम से महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत तुकाराम की कीर्ति का बखान करता है। यह कीर्तिन अलंडि से देहु होते हुए तीर्थनगरी पंढरपुर तक चलता रहता है। यह यात्रा जून के महीने में शुरू होकर 22 दिनों तक चलता है।
श्री विट्ठल मंदिर के साथ ही आप यहां रुक्मिणीनाथ मंदिर, पुंडलिक मंदिर, लखुबाई मंदिर इसे रुक्मिणी मंदिर के नाम से जाना जाता है, अंबाबाई मंदिर, व्यास मंदिर, त्र्यंबकेश्वर मंदिर, पंचमुखी मारुति मंदिर, कालभैरव मंदिर और शकांबरी मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, काला मारुति मंदिर, गोपालकृष्ण मंदिर और श्रीधर स्वामी समाधि मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं. पंढरपुर के जो देवी मंदिर प्रसिद्ध हैं उनमें पद्मावती, अंबाबाई और लखुबाई सबसे प्रसिद्ध है।
पंढरपुर में कुर्दुवादि रेलवे जंक्शन (KURDUVADI) से जुड़ा हुआ है. कुर्दुवादि जंक्शन से होकर लातुर एक्सप्रेस (22108), मुंबई एक्सप्रेस (17032), हुसैनसागर एक्सप्रेस (12702), सिद्धेश्वर एक्सप्रेस (12116) समेत कई ट्रेने रोजाना मुंबई जाती हैं. पंढरपुर से भी पुणे के रास्ते मुंबई के लिए चलती है ट्रेन.
महाराष्ट्र के कई शहरों से सड़क परिवहन के जरिए जुड़ा है पंढरपुर. इसके अलावा उत्तरी कर्नाटक और उत्तर-पश्चिम आंध्र प्रदेश से भी प्रतिदिन यहां के लिए बसें चलती हैं. निकटतम घरेलू एयरपोर्ट पुणे है जो लगभग 245 किलोमीटर की दूरी पर है. जबकि निकटतम अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट मुंबई में स्थित है.

