मध्यप्रदेश विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर हुए हंगामे पर 8 दिन पहले मानसून सत्र समाप्त हो जाने का मामला राज्यपाल के पास है। मध्यप्रदेश विधानसभा का आठ जुलाई से शुरू हुआ मानसून सत्र अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा को लेकर हुए हंगामे और वाद-विवाद के चलते अपने निर्धारित समय से आठ दिन पहले समाप्त हो जाने का मामला अब राज्यपाल रामनरेश यादव के पास विचाराधीन है और अब तक उन्होंने सत्रावसान की फाइल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
राजभवन के सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस विधायक दल एवं विपक्ष के नेता अजय सिंह ‘राहुल’ की शिकायत पर राज्यपाल यादव ने गत चार जुलाई को सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए समाप्त होने के पन्द्रह मिनट बाद ही विधानसभा सचिवालय को इस बारे में रिपोर्ट भेजने के निर्देश दे दिए थे।
इसी बीच राजभवन के अधिकारी विधानसभा सचिवालय पहुंचे और अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सदन की कार्यवाही के विवरण की प्रतिलिपि ले गए। बताया जाता है कि विधानसभा सचिवालय ने सत्र समाप्ति की सूचना राजभवन भेज दी है, लेकिन राज्यपाल ने इस फाइल पर अब तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
इस विषय पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी राज्यपाल यादव से राजभवन जाकर मुलाकात की तथा राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष ईरदास रोहाणी से टेलीफोन पर बात की थी। रोहाणी जबलपुर में थे, लेकिन यादव ने उनसे भोपाल आकर मिलने के लिए कहा है।
सूत्रों का कहना है कि जिस तरह सत्र की समाप्ति हुई है, उसे लेकर राज्यपाल संविधान विशेषज्ञों से राय प्राप्त कर रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार विधानसभा के सत्र राज्यपाल की अनुमति से बुलाए जाते हैं और संविधान के अनुच्छेद 154 में राज्यपाल को सीधे हस्तक्षेप के अधिकार भी हैं।
उधर, कांग्रेस विधायक दल के मुख्य सचेतक एन पी प्रजापति ने कहा है कि राज्यपाल ने विधानसभा का मानसून सत्र आठ से 19 जुलाई तक आहूत किया था, लेकिन सरकार ने कथित साजिश के तहत इसे चार दिन में ही समाप्त करा लिया और विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा एवं मतदान नहीं हुआ। इसलिए फिर से सत्र बुलाया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि चार माह बाद नवंबर में प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राज्य की तेरहवीं विधानसभा का यह आखिरी सत्र था। प्रजापति ने नियम प्रक्रियाओं का हवाला देते हुए कहा है कि संसदीय कार्य मंत्री डा. नरोत्तम मिश्र का यह कहना गलत था कि सभी शासकीय कार्य निपटा लिए गए हैं, जबकि सच्चाई यह है कि चार दिन में कई विधायकों को अपनी बात सदन में रखने का मौका ही नहीं मिल पाया।
सरकार की ओर से शेष आठ दिनों की कार्यवाही के लिए तयशुदा प्रश्नोत्तरी में जनता से जुड़े मुद्दों पर सैकड़ों सवालों के लिखित जवाब आने बाकी थे।