उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। कांग्रेस के शार्पशूटर दिग्विजय सिंह ने अब मोदी की सुपारी उठा ली है। जब से मोदी नेशनल लीडर्स की सूची में शामिल हुए हैं, दिग्विजय सिंह ने उनपर फायरिंग शुरू कर दी है। सनद रहे कि इससे पूर्व भी कांग्रेस के लिए संकट बन गए बाबा रामदेव और अन्ना हजारे को इसी शार्पशूटर ने टपकाया था।
दिग्विजय सिंह जब से केन्द्र की राजनीति में गए हैं, कांग्रेस विरोधियों को धूल चटाने में ही जुटे हुए हैं, हालांकि जब वो अपनी फायरिंग शुरू करते हैं तो अक्सर कांग्रेस अपने हाथ खींच लेती है और वो अकेले पड़ जाते हैं। दूसरे राजनैतिक दल, मीडिया और कई कांग्रेसी भी उन्हें मानसिक विक्षिप्त तक करार दे डालते हैं परंतु अंतत: उनके शब्द प्रमाणित हो जाते हैं और वो उनका टारगेट जमींन पर हांफता हुआ दिखाई देता है।
शुरूआत में उन्होंने संघ समर्थित आतंकवाद को मुद्दा बनाया और अंतत: वह मामले सामने भी आए। नाम बहुत हैं और मामले भी कई, लेकिन संघ समर्थित आतंकवाद के विषय को जनता के सामने लाने की हिम्मत दिग्विजय सिंह ही दिखा पाए। इसके बाद कई छोटे मोटे एनकाउंटर उन्होंने कांग्रेस के लिए किए।
बाबा रामदेव का मामला तो सबको पता है। जिस बाबा को 'मोहने' के लिए पूरी की पूरी मनमोहन सरकार जुट गई थी। आधा दर्जन मंत्रियों ने उनका स्वागत किया, चापलूसी की। जिस बाबा रामदेव के शब्दों पर पूरा देश भरोसा करता था, जिसने बाजार में कोकाकोला जैसे लोकप्रिय ब्रांड को धूल चटा दी। योगा करते करते सोनियां गांधी की टांग खींच देने वाला वही बाबा रामदेव दिग्विजय सिंह की 'बोली की गोली' से इस कदर घायल हुआ कि अब कांग्रेस के खिलाफ बोलने से पहले तौल जरूर लेता है। देश भर में एक नई पॉलिटिकल पार्टी प्लान करने वाले बाबा रामदेव अपने उत्तराखंड के नगरनिगम चुनाव की प्लानिंग भी नहीं कर रहे है।
दूसरा सबसे बड़ा मामला अन्ना हजारे का था। आजादी के बाद यह पहली दफा था जब पूरा का पूरा देश अन्ना हजारे के साथ था। कांग्रेस का हर कदम उसके लिए आत्मघाती होता जा रहा था। देश उबल रहा था, कांग्रेस की सरकार भाप की तरह उड़ने ही वाली थी और पतीले में मिठास भी बस घुल ही रही थी कि अचानक यह शार्पशूटर आ पहुंचा। बस शुरू हो गई 'बोली की गोलियां' अन्ना की परछाईं बन चुके अरविंद केजरीवाल उनसे अलग हो गए, पूरे के पूरे आंदोलन में ही मठा घोल डाला। अब अन्ना को अखबार का आखरी पन्ना भी नसीब नहीं होता और 'केजरीवार' को भी फेसबुक पर ना तो लाइक मिल रहे और ना ही शेयरिंग। देश की समस्याएं सुलझाने के लिए पार्टी बनाई थी, अपनी ही समस्याओं में उलझ कर रह गए।
अब कांग्रेस के इस शार्पशूटर ने मोदी की सुपारी उठा ली है। फायरिंग शुरू हो गईं हैं। ताजा मामला बाबूभाई बुखेरिया का मिल गया है। कुछ हवाईफायर झोंक भी दिए हैं परंतु मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि यह सबकुछ तो बस दिखावा है। दिग्गी का होमवर्क अभी शुरू ही हुआ होगा। चुनाव आते आते तक वो मोदी को ऐसे ऐेसे झमेलों में उलझा देंगे कि मोदी के मैनेजर्स समझ भी नहीं पाएंगे और मोदी वोटिंग से पहले ही पीएम पद की दावेदारी हार जाएंगे।
मैं तो बिहार में नीतिश बाबू को भी सलाह देना चाहूंगा कि मोदी के चक्कर में आकर एनडीए से रिजाइन मत करो। दिग्विजय सिंह पर भरोसा रखो। धीरे धीरे वो मोदी को इतना विवादित कर देंगे कि चुनाव से पहले पहले तक खुद संघ ही मोदी का विकल्प तलाशने के आदेश जारी कर देगा। संघ पर जब आडवाणी का पट्टा नहीं चला तो मोदी का किरायानामा कब तक चलेगा। अंकल आडवाणी भी यही कहना चाह रहे हैं। बस सीधे शब्दों में बोल नहीं पा रहे।
चुप रहो, खुश रहो
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