भोपाल। मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले के सिंगारसत्ती में सूट पहन कर आए एक दूल्हे से दुल्हन पक्ष ने विवाह संपन्न कराने से इनकार कर दिया। लिहाजा दूल्हे को बारात लेकर वापस लौटना पड़ा और दस घंटे बाद जब दुल्हन पक्ष के ड्रेस कोड के अनुरूप दूल्हा परिधान पहन कर आया तब जाकर रीति रिवाज से शादी हो पाई।
सूट बूट में सजे धजे दूल्हे राजा दिलीप ने गांव की ही संतोषी के साथ ब्याह रचाने आ गया लेकिन संतोषी के घर वालों ने दिलीप के सामने सूट बूट की जगह धोती कुर्ता पहन शादी करने की शर्त रख दी जिसके बाद दिलीप की बारात वापिस लौट गई।
वधु पक्ष का कहना था कि दूल्हे के धोती कुर्ता पहने बिना शादी नहीं हो सकती. बारात लौटाने को बाराती भी सही मान रहे हैं। उनका कहना है कि दूल्हा डोल चड्ढी यानी पैंट शर्ट में शादी करने आया था जिसे समाज स्वीकार नहीं करता है।
वधु पक्ष के इनकार के बाद दिलीप की बारात वापस तो लौट गई लेकिन बारात लौटने से अपमानित महसूस कर रहा दिलीप सूट में ही शादी करने पर अड़ा रहा। गांव के लोगों ने इस समस्या के हल के लिए उसे समझाने का प्रयास किया और निर्णय लिया गया कि दूल्हे को पारंपरिक परिधान में ही शादी करनी पड़ेगी।
आखिरकार दिलीप भी अपना हठ छोड़ पारंपरिक परिधान धोती कुर्ता में दुल्हन संतोषी से ब्याह रचाने दोबारा पहुंचा। दुल्हन पक्ष की शर्त मानने के बाद दूसरे दिन फिर से शादी की सभी रस्में निभाई गई और धूमधाम से दुल्हन की विदाई का कार्यक्रम संपन्न किया गया।
सामाजिक परंपरा से किसी भी कीमत पर समझौते के लिए तैयार न होने वाले दुल्हन पक्ष भी पारंपरिक परिधान में विवाह होने पर खुश है।
इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से सामाजिक काम करने वाली गोंडवाना महासभा के संभागीय सचिव हरि सिंह मरावीए के अनुसार गोंडवाना महासभा परिधानों को लेकर कोई निर्देश जारी नहीं करती है बल्कि जिले में गोंडों की विभिन्न उपजातियां अपनी परंपराओं के अनुरूप ही धार्मिक व सामाजिक कार्य करती हैं।
उनके मुताबिक सिंगारसत्ती गांव की घटना भी वहां के समाज की व्यवस्था हो सकती है। हालांकि आदिवासी समाज में कई स्थानों पर इस तरह की परंपराएं आज भी मौजूद हैं, लेकिन महज दूल्हे के परिधान को लेकर बारात को लौटाना और दस घंटे बाद दूल्हे को ड्रेस बदल कर आने पर हुई शादी पूरे इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है।