प्रदीप गौर/ अतीत के अँधेरे में देखे 1995 में जब पहली बार शिक्षाकर्मी बने तो हम बड़े उत्साहित थे की हम उसी विद्यालय में शिक्षक बन रहे है जिसमे हम पढ़े थे यानि सरकारी विद्यालय 1995-98 तक का समय 500-500-1000 के मानदेय पर गुजरने के बाद 1998 में 800-1000-1200 के वेतनमान में नियुक्त होते समय सोचा था की हमारा भविष्य सुनहरा होगा
परन्तु आज हम राजनेताओं के शोषण में जीने को मजबूर है चाहे कांग्रेस की दिग्गी सरकार हो जिन्होंने इस शोषित वर्ग को जन्म दिया और अपनी सामंती प्रवृत्ति से हमारा भरपूर शोषण किया आज यदि किसी शिक्षा कर्मी से पूछा जाये तो वो यही कहेगा की मै और मेरा परिवार दिग्गी रजा को कभी माफ़ नहीं कर सकता जिन्होंने हमारे वर्तमान और भविष्य दोनों को बर्बाद कर दिया।
आज भी हम उन्हें दिल से बद्दुआ देते है उनके बाद उमा जी और गौर साहब आये जिसमे उमा जी ने ख्वाब दिखाते हुए कहा की सरकार बनने पर पहली केबिनेट में संविलियन होगा पर जब उन्हें वादा याद दिलाया तो उन्होंने लाठिया भंजवाईं गौर साहब ने भी यही किया जिसका परिणाम भी उन्हें मिला।
अब शिवराज सरकार है अध्यापक इनसे उम्मीद लगाये बैठे है कहते है शिवराज जी जमीनी नेता है एक बार जिससे मिल लेते है भूलते नहीं नाम सहित याद रखते है क्या इन्हें नहीं मालूम की सहायक शिक्षक 35000 वेतन ले रहे है दूसरी तरफ संविदा 5000 और अध्यापक 10000 में कार्य कर रहे है क्या इतने वेतन में हमारे गुजर ठीक से हो सकता है कदापि नहीं यदि आज सर्वे कराया जाये तो 1995 के बाद नियुक्त 75 प्रतिशत अध्यापक गरीव या अति गरीब के रूप में जीवन जी रहे है।
आज मेरी आयु 45 के पार होने को है सर पर छत की चिंता बच्चों की पढाई की चिंता सब कुछ है बस नहीं है तो धन जिसकी आज बेहद जरूरत है पर सरकार सोचती है आश्वाशन से पेट भर जाता है क्या ऐसी असुरक्षा के कोई मन से कार्य कर सकता है आज भी सबसे निरीह कर्मचारी अध्यापक ही है।
पर लगता है की अब शोषण का अंत होने वाला है छत्तीसगढ़ की रमन सरकार ने शिक्षाकर्मियों की चुप्पी से डरकर जो वेतन मान दिया है वह भी अधूरा न्याय है अधूरा इसलिए की संविलियन नहीं पेंशन नहीं वर्ग 3 का वेतन बेहद कम होना सहित कई कमियां है जिनका निराकरण होना शेष है मध्यप्रदेश में अध्यापक नेता अपनी ढपली अपना राग अल्लाप रहे है।
गत माह मै भोपाल में था कुछ अध्यापक नेता कहते है अभी हम चलते है नहीं तो प्रमुख सचिव फोन कर देंगे की जल्दी से 3 थे वेतन का मसोदा तैयार करके दो ये लोग अध्यापको को मूर्ख बना रहे है क्या सरकार के पास और कोई नहीं बचा जो इन अध्यापको से नए वेतनमान का प्रस्ताव बनवा रही है। क्या सरकार और अध्यापक नेता आम अध्यापक को मूर्ख समझ रहे है अगर ऐसा है तो यह आत्मघाती है सरकार एवं अध्यापको के नेता दोनों के लिए।
जब हम भूखे रहकर अनशन कर सकते है तो इनके दोने लुढ़काकर परसी थाली वापस खींचना हमारे लिए बड़ी बात नहीं है। मरता क्या नहीं करता की तर्ज पर अगले आन्दोलन का शंखनाद होगा और नारा होगा करो या जाओ। शिवराज जी और उनके अफसर पता नहीं क्या नीति बना रहे है पर लगता है की 17 साल से हमारे हिस्से को हड़पने के बाद भी सरकार का पेट नहीं भरा है पर इस बार हमने भी तय कर लिया है की लेंगे तो पूरा लेंगे अधूरा नहीं और टुकड़े तो कभी नहीं।
टुकड़ों से तो कुत्तों का पेट भरता है शिक्षकों का नहीं
यदि सरकार अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहती है तो उसे हमारा वर्तमान और हमारे बच्चो का भविष्य सुधारना होगा। कितनी अजीब बात है जब हम किसी मंत्री या अफसर को ज्ञापन देते है तो हर बार यही पूछते है आपकी क्या समस्या है क्या मांग है ये लोग निहायत बनाबटी है जब इन्हें 4 लाख परिवारों की पीढ़ा नहीं मालूम तो ये सरकार में बैठकर क्या कर रहे है क्या यही है अन्त्योदय।
प्रदीप गौर
सचिव
राज्यध्यापक संघ
ब्लाक सिवनी मालवा
9630190078