ये है वो चेहरा जिसे 100 से ज्यादा हत्याओं के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी। ताज्जुब कीजिए की ना तो इन्हें फांसी पर लटकाया गया और ना ही अब ये डाकू है। अब इन्हें देश-दुनिया में राजयोगी संत के रूप में जाना जाता है। जी हां, ये है ये है ब्रह्मकुमार पंचम भाई, जो 45 साल पहले चंबल के बीहड़ों में खूंखार डाकू 'पंचम सिंह' के नाम से जाने जाते थे।
सन 1926 में भिंड (मध्यप्रदेश) के सिंगपुरा गांव में जन्मे पंचम ने चौथी कक्षा तक ही शिक्षा ली। जब वे 32 साल के थे, गांव के चुनावी माहौल में दो गुटों में झगड़ा हो गया। एक समूह के कुछ लोगों ने पंचम को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया। बीस दिन अस्पताल में भर्ती रहने के बाद पंचम ने बदला लेने की ठानी और चंबल के डाकुओं के साथ जा मिले। चौदह साल डाकू बने रहे और सैकड़ों लोगों की हत्याएं की।
फिर अचानक जीवन में बदलाव आया और जंगल में सफेद वस्त्रों में मिले एक दिव्य रूप ने उसे आत्मसमर्पण करने का संदेश दिया। उसी दौरान सन 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने डाकुओं से समर्पण की पेशकश की। पंचम सहित सभी डाकू समर्पण को तैयार हो गए। जिन्हें गुना के पास मुंगावली की खुली जेल में रखा गया।
जेल में ब्रह्मकुमारीज ज्ञान शिविर शुरू हुआ जिससे डाकू पंचम सिंह के जीवन में बड़ा बदलाव आया। और फिर शुरू हुई डाकू से साधू बनने की कहानी। तीन साल तक ब्रह्मकुमारी ज्ञान लेकर डाकू पंचम सिंह पूरी तरह से संत बन चुका था। उस बात को 41 साल बीत चुके हैं। अब वे ब्रह्मकुमार पंचम भाई के नाम से जाने जाते हैं और देशभर में भ्रमण कर लोगों को बदलाव की शिक्षा देते हैं। उनकी प्रेरणा से हजारों कैदी अब तक आदर्श जीवन अपना चुके हैं।
