भोपाल। करोड़ों रुपए के फर्जीवाडे में जिम्मेदार अफसर को कैसे और किस तरह से बचाया जाता है, यह उसकी बानगी है। कार्यालय आयुक्त अनुसूचित जाति विकास में वर्ष 2008-09 से 2009- 10 के बीच भ्रष्टाचार, फर्जी आहरण, गबन एवं वित्तीय अनियमितताओं की जांच में पुष्टि होने के बाद भी सिर्फ कर्मचारियों की बलि चढ़ाने की तैयारी है।
दूसरी ओर, अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी की जांच में भ्रष्टाचार की पुष्टि और विधानसभा में सरकार की घोषणा के बाद भी जिम्मेदार अफसर के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पा रही है। दरअसल, आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने अनुसूचित जाति विकास में वित्तीय अनियमितताओं पर एफआईआर दर्ज की है।
खास यह कि, इसमें सिर्फ कर्मचारियों को ही आरोपी बनाया गया है, लेकिन फर्जी आहरण के लिए जिम्मेदार तत्कालीन अपर संचालक, लेखा को बख्श दिया गया है। इस मामले में अनुसूचित जाति विकास के सुरेश थापक, एसके बावनकर और गोविंद जेठानी के अलावा राज्य मंत्रालय स्थित ट्रेजरी के एसबी गुप्ता, नंदकिशोर रायकवार, पीएन सक्सेना, ए सुरेश और श्रीमती जयश्री के खिलाफ अपराध क्रमांक 6112 अंतर्गत धारा 420, 409, 467, 468, 471, 120 बी आईपीसी के अलावा 13(1) आरडब्ल्यू सेक्शन 13 (2) दर्ज किया गया है। हालांकि, तत्कालीन अपर संचालक, लेखा एसएस भंडारी के खिलाफ आर्थिक अनियमितता के प्रमाण होने के बाद भी बीते दो साल से कार्रवाई टल रही है। फिलहाल यह मामला कार्रवाई के लिए बीते सालभर से प्रमुख सचिव कार्यालय, आदिम जाति कार्यालय में लंबित है।
याचिका दाखिल
आरटीआई कार्यकर्ता पुनीत टंडन ने हाईकोर्ट में याचिका क्रमांक 964613 दाखिल करके ईओडब्ल्यू की भूमिका पर सवाल खडे करते हुए सीबीआई से जांच के आदेश देने की मांग की है। टंडन का कहना है कि 1 करोड़ 94 लाख 21 हजार 185 के घोटाले पर एफआईआर में सिर्फ कर्मचारियों के खिलाफ जांच की जा रही है, जबकि लेखा शाखा के प्रभारी और अपने हस्ताक्षर से अनियमितताएं करने वाले अपर संचालक एसएस भंडारी को बख्श दिया गया है। हालांकि, तत्कालीन अपर मुख्य सचिव प्रशांत मेहता की अध्यक्षता वाली जांच कमेटी ने भंडारी को जिम्मेदार ठहराया था। लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।