भोपाल। मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी पर बने बांध के विस्थापित फिर छले गए हैं। वे अब बांध के करीब आंदोलन करने की बजाय राजधानी भोपाल में अपनी ताकत का इजहार कर आर-पार की ल़डाई ल़डने पर विचार कर रहे हैं। वे अब राजधानी की स़डकों पर उतरकर अपना हक हासिल करना चाहते हैं। नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध व इंदिरा सागर बांध के प्रभावितों ने बीते साल जल सत्याग्रह कर सरकार की नींद उ़डा दी थी।
तब सरकार ने तीन मंत्रियों की समिति बनाकर प्रभावितों की मांग पूरा करने का भरोसा दिलाया था, मगर पूर्व में किया गया वादा अब तक पूरा नहीं हो पाया है। प्रभावितों को न तो जमीन मिली और न ही पुनर्वास नीति के मुताबिक सुविधाएं मिली। यही कारण है कि कई प्रभावितों ने मुआवजे की राशि तक लौटा दी है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन के अलोक अग्रवाल का कहना है कि नर्मदा घाटी में बन रहे ओंकारेश्वर, इंदिरा सागर, महेश्वर, अपर बेदा और मान बांध के प्रभावितों के लिए बनी पुनर्वास नीति के अनुसार जमीन के बदले न्यूनतम पांच एक़ड जमीन और पुनर्वास की अन्य सभी सुविधाएँ देकर बसाना था, परन्तु राज्य सरकार द्वारा इस नीति का पूरी तरह से उल्लंघन किया गया। सर्वोच्च नयायालय ने यह पाया कि सरकार ने एक भी विस्थापित को जमीन नहीं दी और इस तरह से पुनर्वास नीति के अन्तर्गत अपने एक भी कर्तव्य को नहीं निभाया।
अग्रवाल के मुताबिक सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार और नर्मदा घाटी प्राधिकरण को अनिवार्य रूप से न्यूनतम पांच एक़ड का जमीन आवंटन या फिर प्रभावित को जमीन खरीदने में सहायता करने का निर्देश दिया है। सरकार ने इसका अनुपालन किए बिना इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांधों में पानी भरना चालू कर दिया। अग्रवाल बताते हैं कि प्रभावितों के जल सत्याग्रह के बाद राज्य सरकार ने ओंकारेश्वर बांध का पानी तो उतारा और विस्थापितों को जमीन और पुनर्वास देने की घोषणा की, और ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर बांध प्रभावितों के पुनर्वास के लिए तीन मंत्रियों की एक समिति का भी गठन किया था।
कमानखे़डा की गिरिजा बाई का आरोप है कि सरकार और परियोजनाकर्तां बंजर एवं अतिक्रमित जमीन दिखाकर फिर से विस्थापितों के साथ छल कर रहे हैं और सर्वोच्च न्यायालय का खुला उल्लंघन कर रहे हैं। भूमिहीन परिवारों के लिए 2$5 लाख रूपये के अनुदान के बारे में भी सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया है। जल सत्याग्रह के आठ माह बाद भी पुनर्वास योजना में कोई प्रगति नहीं हुई है। यही कारण है कि सरकार की नीतियों से नाराज ओंकारेश्वर बांध के सैक़डों प्रभावितों ने 10 करो़ड रूपये से अधिक का मुआवजा भी वापस कर दिया। प्रभावितों का कहना है कि इंदिरा सागर बांध में सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद गत वर्ष 260 मीटर के ऊपर पानी भरने से सैक़डों घरों व खेत डूब गए जिनका भू-अर्जन और पुनर्वास होना अभी भी बाकी है।
महेश्वर बांध में निजी परियोजनाकर्ता द्वारा बांध की दीवार पूरी बनाने के बावजूद 85 प्रतिशत से अधिक पुनर्वास का काम बाकी है। स्वयं राज्य सरकार ने माना है कि पुनर्वास के लिए जरूरी 740 करो़ड रूपये में से परियोजनाकर्ता द्वारा मात्र 203 करो़ड रूपये उपलब्ध कराए गए हैं। अपर बेदा और मान बांधों के आदिवासी प्रभावित भी सालों से पुनर्वास के लिए इंतजार कर रहें है। अग्रवाल बताते है कि सरकार ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर बांध से बिजली बना रही है। सरकारी कंपनी एन$ एच$ डी$ सी$ ने पिछले पांच वर्षो में लगभग 3000 करो़ड रूपये का शुद्घ लाभ कमाया है परन्तु विस्थापितों के पुनर्वास पर खर्च नहीं करना चाहती है, जिस कारण पुनर्वास सम्भव नहीं हो सका है। अत: साफ है कि जानबूझकर विस्थापितों का पुनर्वास नहीं किया गया है।
सरकार की वादा खिलाफी से नाराज विस्थापित 10 से 14 जून तक राजधानी भोपाल में इक्कठे हो रहे हैं। वे यहां नर्मदा जीवन अधिकार सत्याग्रह करने जा रहे हैं। सत्याग्रही पांच दिन तक उपवास रखकर सरकार को जगाने की कोशिश करेंगे। प्रभावितों की मांग है कि उन्हें बंजर और अतिक्रमित जमीने न दिखाकर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार अच्छी निजी जमीने खरीद कर दी जाएं। भूमिहीनों को आजीविका के लिए 2$5 लाख रूपये का विशेष अनुदान दिया जाए और इसके अतिरिक्त तमाम अन्य पुनर्वास की सुविधाए तत्काल उपलब्ध कराई जाएं। प्रभावितों की यह मांग है कि यदि सरकार पुनर्वास नीति के अनुसार पुनर्वास नहीं कराती है तो सभी बांधों को खाली कर दिया जाए।