राकेश दुबे@प्रतिदिन। पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आज़ाद ने आज जो सवाल उठाये हैं,वे क्रिकेट में फिक्सिंग के काले गोरखधंधे कि कलई खोलने के लिए काफी है। केवल कुछ खिलाडियों और बुकियों को गिरफ्तार करने से यह मामला हल नहीं होगा। इस गोरखधंधे के संरक्षकों से पूछताछ और नैतिकता के आधार पर इस्तीफों से बात बन सकती है , वैसे तो भारत सरकार को बोर्ड को भंग कर देना चाहिए था। जो राजनेता खिलाडी न होने के बावजूद बोर्ड या उसकी किसी समिति में शामिल हैं, उन्हें विदा कर देना चाहिए।
कीर्ति आज़ाद ने तीन इस्तीफे मांगे हैं। बोर्ड के अध्यक्ष श्री श्रीनिवासन का, बोर्ड के कमिश्नर श्री राजीव शुक्ला का और अनुशासन समिति के चेयरमेन श्री अरुण जेटली का। सच तो यह है कि इनमे से किसी ने भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया । सी बी आई से सेवानिवृत्त अधिकारी जो अभी बोर्ड को अपनी सेवाएं दे रहे हैं, ने पिछले दिनों इस सम्बन्ध में एक रिपोर्ट दी थी । सबके पास उसकी प्रति थी । सब भारी भरकम भत्ते लेते रहे और पर्दा डालते रहे । अभी तो किसी का एक दामाद ही मिला है,औरों के भाई-भतीजों के भी सिलसिले हैं ।
देश के हर छोटे-बड़े शहर में इन राजनेताओं के कृपापात्र बिखरे हैं,जो आई पी एल सहित कुछ भी करते कराते हैं ।
भारत सरकार, राज्य सरकारें और उनके गुप्तचर यह भलीभांति जानते हैं कि क्रिकेट और नारकोटिक्स का धंधा कौन चला रहा है ? और कौन कौन इसके लाभ ले रहा है। इन्हीं कारणों से दाउद को हम ढूंढ़ नहीं पा रहे हैं , भले ही "तोता" हो , पर "तोता" हकीकत जानता है। कीर्ति के सहोदर तो "तोतों " के हेड मास्टर हैं।
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं।
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