रघुनंदन शर्मा/ अविवेक के चूल्हे पर सियासी रोटियां सेंकना कांग्रेस का शगल रहा है। कांग्रेस प्रवक्ता की टिप्पणी ने भी यह साबित कर दिया है। वे भूल गए है कि वामपंथ और भारतीय जनता पार्टी दो विपरीत धु्रव हैं, जिनका कहीं कोई मेल जोल होना असंभव है।
कांग्रेस को अपने गिरहवान में झांकने का साहस दिखाना चाहिए। वैसे भी नक्सली हमले की त्रासद घटना की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने आरंभ कर दी है, इसलिए आरोप प्रत्यारोप का कोई औचित्य नहीं है।
छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या कोई तात्कालिक समस्या नहीं है। छत्तीसगढ़ में जब अजीत जोगी की सरकार थी तब भी उनके द्वारा दी गयी शह की आम चर्चा बनी रहती थी और यह भी कहा जाता रहा है कि वे नक्सलियों के सहयोग के लाभार्थी भी रहे है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी को अपनी जांच में सभी पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए जिससे नक्सलियों द्वारा किए गए निमर्म नरसंहार की वास्तविकता जनता के सामने आ सके।
घटना के कुछ समय पूर्व ही अजीत जोगी काफिला का साथ छोड़कर उड़ गए। फिर परिवर्तन यात्रा को निर्धारित रूट से न ले जाकर अचानक रूट का परिवर्तन क्यों कर दिया गया ? फिर जब नरसंहार की घटना में सुकमा का विधायक लकमा कलासी बच गए तो उन्होंने सबसे पहले अजीत जोगी को ही घटना की प्रथम जानकारी दी और अजीत जोगी पत्रकारों से रूबरू हो गए। यह सब वजूहात कांग्रेस के अंतद्वन्द्व को ही उजागर करते है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी को इन तथ्यों पर गौर करना चाहिए।
कांग्रेस नक्सली घटना के लिए सुरक्षा चूक को मुद्दा बनाने के पहले इस बात पर विचार करें कि क्या नक्सलियों को राह चलते कारवां पर ऐसी वहशी कार्यवाही की आजादी दी जा सकती है। फिर महेन्द्र कर्मा ने सलवा जुडूम आंदोलन आरंभ करके इस क्रांति को जन्म दिया था। महेन्द्र कर्मा को सुरक्षा चुनौती है। यह बात राष्ट्रीय गृह मंत्रालय को भी मालूम थी फिर केन्द्र सरकार ने महेन्द्र कर्मा की सुरक्षा का बंदोबस्त क्यों नहीं किया ? केन्द्रीय जांच एजेंसी को सारे मुद्दों पर विचार कर निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए। जिससे भविष्य में राजनेताओं को इस तरह की असानुशिक नरसंहार की घटना से रूबरू न होना पड़े।
- लेखक रघुनंदन शर्मा भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं संसद सदस्य हैं