भोपाल। पिछले दिनों एक बार फिर सीएम से अध्यापक संगठनों की बातचीत हुई, लेकिन मनोहर दुबे और मुरलीधर पाटीदार की मीटिंग की तारीखें अलग अलग थीं, यहां सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि जब मांगें समान हैं और सरकार भी एक ही है तो सभी संगठनों से एकसाथ बातचीत क्यों नहीं करती सरकार। सवाल यह भी है कि संगठन क्यों नहीं सरकार को इसके लिए प्रेरित करते, ताकि एक ही मीटिंग में फाइनल डिसीजन हो सके।
इस मामले की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की है अध्यापक संयुक्त अध्यापक मोर्चा के मनोज मराठे ने। उन्होंने भोपालसमाचार.कॉम को भेजे ईमेल में लिखा है कि मध्यप्रदेश में सरकार ने शिक्षकों के पदनाम व् वेतन अलग अलग वेतनमान के नाम पर जंहा असमानता फेलाई वही गुरूजी संविदा शिक्षक व् अध्यापको के अलग अलग संगठन बने किन्तु पिछले दिनों सभी संगठनो ने मिलकर संयुक्त मोर्चा का निर्माण कर एकसाथ आंदोलन व् हड़ताल की मप्र व् छग में अध्यापक संवर्ग की एकता और ताकत को देखकर उनकी मांगे मानाने पर सहमति जताई।
छग में जंहा सामानकार्य सामान वेतन व् प्राचार्य पदों पर प्रमोशन की मांग मान ली गई वंही मप्र में छटा वेतनमान एकसाथ देने के बजाय किश्तों में देने की प्रक्रिया अफवाहों में चल रही है किन्तु इन सब प्रक्रियाओ के बीच सरकार का दायित्व हे की यदि अध्यापक संवर्ग के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की चर्चा या वार्ता रखनी है तो मोर्चे के किसी एक गुट को बुलाने या अकेले आने पर चर्चा नहीं करपी चाहिए सभी गुटों के प्रतिनिधियों को एकसाथ एकसमय देकर वार्ता करनी चाहिए।
ये किसी गुट या संगठन का मामला न होकर सभी गुरूजी संविदा शिक्षक के मर्म से जुड़ा मामला है आज जो गुरूजी है कल संविदा एवं जो संविदा है वे कल अध्यापक बनेंगे इसलिए सभी को प्राथमिकता देते हुए संयुक्त चर्चा करनी चाहिए। अलग अलग चर्चा करने से गुटबाजी के साथ भ्रम की स्थिति निर्मित हो रही है। जो की सरकार ने नहीं होने देना चाहिए ये सरकार का नैतिक दायित्व है ताकि एकरूपता बनी रहे जो की सरकार जिम्मेदारी है।
पिछले दो माह से कभी पाटीदार ग्रुप से तो कभी दुबे ग्रुप से अफवाह भरी खबरे आती है की पीएस मनोज श्रीवास्तवजी से हमारी सार्थक वार्ता सकारात्मक चल रही है। वेतन पर बात बनी व संविलियन पर विचार चल रहा है एक माह तक पाटीदार ग्रुप से ये बाते सुनने को मिल रही थी तो पिछले सप्ताह से दुबे ग्रुप की और से उन्ही बातों का पुनः प्रसारण किया जा रहा है जिन्हें नेतागिरी करना है वंहा तक ठीक है किन्तु किसी सरकार के प्रतिनिधि का नाम जुडने के बाद सकारात्मक वार्ता का आदेश नहीं निकलना अध्यापकों के साथ धोखा है इस तरह की चर्चाएं मध्यप्रदेश सरकार की गलियारों मे भी है व फिर सरकार ने तत्काल आदेश जारी करना चाहिए अध्यापकों के नेताओं को गुमराह नहीं करना चाहिए।
यदि बुलाया है तो इस बीच पिछले एक माह से पाटीदारजी एंड ग्रुप खामोश है इसपर सरकार ने ध्यान देना चाहिए और तत्काल सभी गुटों से चर्चा करनी चाहिए अन्यथा अध्यापक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी तेरी साड़ी से मेरी साड़ी सफ़ेद की रणनीति छोड़ एकमंच पर आकर सरकार से वार्ता करनी चाहिए अन्यथा अध्यापक बंधुओ का विश्वास धीरे धीरे टूटता चला जायेगा और गुटबाजी का परिणाम सरकार उठा ही रही है अन्यथा कब से हमें भी छग की तरह सामान कार्य सामान वेतन मिल चूका होता। जो देना है जबसे देना है के देकर तीन लाख परिवारों की चिंता दूर सरकार ने तत्काल करना चाहिए। यह सरकार का दायित्व है किन्तु सरकार भी बार बार आवेदन ज्ञापन और वार्ताएं कर अध्यापको को गुमराह कर रही है जो उचित नहीं है । छग की तर्ज पर तत्काल सीधे आदेश जारी कर अध्यापको की चिंता दूर करना चाहिए।
आपका
मनोज मराठे
9826699484
संयुक्त अध्यापक मोर्चा