शायद इन्हें रोकना सरकारों के बस में नहीं

राकेश दुबे@प्रतिदिन। नक्सली समस्या देश की सर्वाधिक चर्चित घटना बन चुकी है, लानत- मलामत, शक- सुबहा, आरोप-प्रत्यारोप और मिल कर लड़ेंगे कि अगली  कड़ी, निलम्बन और तबादलों के बाद अब  कुछ गंभीर विचार शुरू हुआ है।

जो जानकारी केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सहज स्वीकार की जा रही है। अत्यंत चौकानें वाली है, पश्चिम बंगाल से शुरू हुआ यह तथाकथित आन्दोलन अब देश के 11 राज्यों के 256 जिलों में  अर्थात आधे भारत में फैल चुका है।

उड़ीसा,महाराष्ट्र ,झारखण्ड,मध्यप्रदेश,छतीसगढ़,केरल ,आन्ध्र, बिहार कर्नाटक और हरियाणा के कुछ हिस्सों में  इस आन्दोलन के जीवित होने की पर्याप्त सूचनाएं राज्यों और केंद्र की सरकारों के पास हैं ।जो साझा जानकारी, सरकारी भाषा में नवीनतम बताई जा रही है, का अर्थ यह निकलकर सामने आ रहा है कि मार्क्सवादी कैडरों ने इन ११ राज्यों में अपनी जड़ें इतनी गहरे  तक जमा ली हैं, इन्हें मात्र सुरक्षा बलों के सहारे नहीं खोदा  जा सकता है।

फिर हल क्या है ?सबसे पहले सारी  सरकारों का इस समस्या की एक परिभाषा तय  करना होगी कि यह समस्या सामाजिक और आर्थिक थी और अब भी वैसी ही है या समस्या का रूप बदला गया है और यह कानून व्यवस्था की समस्या बन गई है।

सारे दल और विशेष कर वामपंथी दलों को इस समस्या के निराकरण हेतु संवाद प्रारम्भ करना चाहिए, जो अभी नहीं हो रहा है । सत्तारूढ़ और प्रतिपक्षी दलों की भूमिका  तो इसके बाद शुरू होगी अभी स्थिति उलटी है। जिन्हें संवाद करना है वे चुप है , और जिन्हें कुछ करना है, वे दिशाहीन है, सिर्फ फण्ड देने से या गोली चलाने से समस्या का अंत नहीं होगा।


  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं। 
  • संपर्क  9425022703 
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