राकेश दुबे@प्रतिदिन। कुछ खबरें एक साथ चर्चा में हैं। जैसे छत्तीसगढ़ में 20 हजार और अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती, आई पी एल के सट्टेबाज़ोंमें की संख्या में वृद्धि और मध्यप्रदेश सरकार पर सुप्रीमकोर्ट द्वारा 1 लाख का जुरमाना । इन तीनों का रिश्ता है, जी। समाज में पिछले दिनों क्या घटा और आगे क्या होगा इसका आभास देती हैं, ये खबरें । आईना हैं, भारतीय प्रशासनिक समाज का।
देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर अब तक सारे प्रधानमंत्रियों का जोर आदिवासी विकास और सहकारिता पर रहा है। आदिवासी विकास की उपेक्षा का परिणाम है नक्सलवाद। आज छतीसगढ़ में केंद्र और राज्य के पुलिस बल की संख्या लाखों में पहुंच चुकी है। तीन पीढियां के गले विकास की यह राह नहीं उतर रही है और नक्सलवाद बढ़ता ही जा रहा है। कहीं न कहीं तो कमी है।
यह आंच अब मध्यप्रदेश में भी पहुंच रही है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार के असह्कारी कृत्य पर 1 लाख रूपये का जुरमाना किया है। मध्यप्रदेश में कोई भी सरकार रही हो ,सभी ने सहकारिता को अपनी दुकान की तरह चलाया है। इस विषय पर अगर गम्भीर नहीं हए तो सहकारिता के क्षेत्र दबंगों की सेनाएं इन संस्थानों पर कब्जा कर लेंगी । आई पी एल की चेन तो अब तहसील स्तर तक है , अब वहां के बुकी पकड़े जा रहे हैं।
प्रश्न यह है की कल्याणकारी राज्य का मतलब आँखे बंद करना और अनदेखी कर समस्या को और गंभीर होने देना है या उसका निराकरण बंदूक से करना है । ये दोनों पद्धति कल्याणकारी राज्य की नहीं हो सकती । खुले दिमाग से सोचें, शायद इन सबकी जड़ भ्रष्टाचार है । इसे रोकें।