भाजपा जितने मुंह, उससे दुगनी बातें

राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश की  राजनीतिक पार्टियों में सबसे ज्यादा अंदरूनी  बवाल भारतीय जनता पार्टी में मचा है और स्थिति यहाँ तक पहुंच गई  है किसी को कुछ नहीं मालूम तो किसी को कुछ नहीं पता । सबको सब पता कब लगेगा यह भी किसी को नहीं पता । आखिर निर्णय प्रक्रिया की यह कौन सी पद्धति है ।

इतिहास बताता है की इसी अनिर्णय और अनिश्चय से पहले जनसंघ में फिर भाजपा में से  नये दल बने फिर जुड़े और लगता है ऐसा ही चलता  रहा तो फिर से टूटने की सम्भावना  बनेगी । इस बार टूटने का भाव स्थायी लगता है । जो केंद्र और राज्य की राजनीति  को इस हद तक प्रभावित करेगा कि वे राज्य सरकारें खतरे में आ सकती हैं , जो अभी चुनाव की दहलीज पर खड़ी हैं ।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार को उखाड़  फेंकने सेहरा  साध्वी  उमा भारती के सिर है , वे गंगा की आरधना में  लीन है । कहने को वे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है पर उनके गृह प्रदेश की सूची  में न तो वे हैं और  न उनके नजदीक समझे जाने वाले वे  लोग , जो कि पीढ़ियों से जनसंघ फिर भाजपा का झंडा थामे हुए हैं । ऐसा ही छतीसगढ़ और राजस्थान में भी है ।मूलत: बिहार के पर संघ के अधिकारी विशेष के प्रेम  कृपा के कारण पहले मध्य प्रदेश में अध्यक्ष और अब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा भी अवसाद में है मौका  मिलते उनका लावा  फूट  निकलता है ।

सबसे ज्यादा मुसीबत देश के दो नेताओं की है । एक लालकृष्ण आडवाणी  और दूसरे  नरेंद्र मोदी । कुछ इन्हें तो कुछ उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने पर उतारू हैं । कुछ बड़े  नेता यह सौभाग्य खुद  लेना चाहते  हैं । किसी को अपने  पसंद नहीं कर  रहे तो किसी को  गठबंधन के अपने । भाजपा के एक  सांसद ने   बड़े मार्के की बात कही  है " कांग्रेस में कोई प्रजातंत्र है , सब एक नाम राहुल गाँधी पर लगे हैं।" शायद भाजपा का  माज़रा तो और ........ है । यहाँ तो समझौता उम्मदीवार के रूप में "राज" को  नाथने को बहुत  से तैयार हैं।

  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं। 
  • संपर्क  9425022703 
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