तुष्टीकरण और सम्पादकीय धर्म

राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के मुखपत्र चरैवेति में पुनर्मुद्रित एक लेख ने एक नई बहस प्रारम्भ की है| जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर राजनीतिक मुखपत्रों का प्रकाशन और सम्पादकीय धर्म के बारे में कुछ नया सोच जैसी बहस को जन्म देता है|

इतिहास का बहुत सा हिस्सा बहुतों को मालूम है और जो नहीं जानते उनमें ही चरैवेति की प्रकाशक संस्था के सचिव भी हैं| मुश्किल यह हैं की वे सबक जिसे दे रहे हैं वह वैचारिक रूप से, अकादमिक रूप से और व्यवसायिक रूप से उनसे अधिक मजबूत है|

पत्रिका के जिस लेख को लेकर विवाद है उसे पहले किसी ने देखा नहीं| चरैवेति के सम्पादक ने महिला दिवस पर समयोचित विषय पर लेख जो पहले भी कहीं छपा है को पुनर्मुद्रित  किया  जो कहीं से गलत नहीं है| आपत्ति, आगामी चुनाव में इसके परिणाम की सम्भावना को लेकर शुरू हुई और जिसने भी इस लेख को नहीं पढ़ा था वह भी पत्रिका खोजने लगा| अब रिपोर्ट भी हो गई|

यहाँ प्रश्न यह है की क्या  दीनदयाल जी के नाम पर बनी संस्था में इतना भी विचार नहीं होता की हमारा अपना विषय क्या है और हम जो कर  रहे है| उसके परिणाम क्या होंगे ? बिना किसी कारण विवाद खड़ा हो गया| ऐसी मानसिकता से तुष्टीकरण का पोषण होता है| ऐसे प्रकाशनों में कार्यरत संपादकों का आधार ज्यादा पुष्ट होता है और वे सतर्क किसी चिकित्सक से अधिक होते हैं| लेखक ने जिन लेखों और पुस्तकों का हवाला दिया है वे सर्वत्र उपलब्ध है| अब पत्रिका के भेजने का सवाल आता है तो पत्रिका प्रबन्धन को यह बात 34 हजार पत्रिका पोस्ट होने के बाद क्यूँ सूझी ? शायद सब अपना-अपना काम नहीं कर  रहे हैं|



  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं। 
  • संपर्क  9425022703 

  • भोपाल समाचार से जुड़िए
    कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
    टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
    व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
    X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
    फेसबुक पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
    समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
    जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

    #buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

    Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
    Ok, Go it!