अनुराग चंदेरी/ आधुनिक युग में विज्ञान के सहारे ये दुनिया एक अद्भुत और चमत्कृत दुनिया बन चुकी है . विज्ञान के चलते हमारा जीवन फर्श से अर्श और अर्श से फर्श तक पहुच चूका है , विशेष रूप से इलेक्ट्रोनिक क्रांति के कारण हमारे जीवन में सुबिधाओं के अम्बार लग गए है , हमारा जीवन और अधिक आसान हो गया है . टेलिविज़न के आविष्कार के चलते जीवन में ज्ञान और चेतना के नए युग का सूत्र पात हुआ , फिर इसके साथ वीडियो , वीसीआर ,सीडी, डीव्हीडी. इत्यादि का प्रयोग समाज का अभिन्न अंग बन गया .
इसके साथ ही कंप्यूटर ने तो जीवन को ऐसी ऊंचाइयां दी जिससे ये दुनिया एक अलग ही लोक बन गई . इन मनपसंद खुशियों के आगमन के क्रम में मोबाइल ने सारे दुनिया को बिलकुल निकट ही बैठा दिया . व्यक्ति और व्यक्ति के मध्य सारी दूरियां सिमट गई . ये पहलू बेहद लुभावना एवं रोचक भी है .
प्रत्येक सिक्के के दो पहलू होते है और मोबाइल के दुरूपयोग का पहलु बेहद खतरनाक और चौंका देने बाला है . ये पोर्न फिल्मों की आंधी को अपने साथ ले के आया है . आज हमारे समाज को विकृत करने का जिम्मा मोबाइल ने ले लिया है . पहले ब्लू फ़िल्में आम आदमी की पहुच से बाहर थी , लोगों को विशेष साधन जुटाने पड़ते थे लेकिन आज मोबाइल क्रांति ने अश्लीलता के झंडे को गाड़ दिया है , माँ बाप बेचारे भोले भाले होते हैं ,उनका उद्देश्य केवल अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा सुबिधाये प्रदान करना होता है . अतः बे अच्छे से अच्छे मोबाइल दिला देते हैं , बे सोचते हैं की जो सुबिधायें हमें नहीं मिली बे बच्चों को मिल जाएँ . इसके घातक परिणाम हमारे समाज को भोगना पड़ रहे हैं और यदि हम नहीं जागे तो और भी भयानक परिणाम हमारे सामने होंगे .
जरा सोचें कृपया की मोबाइल का काम अगर बात करने का है तो आप उसे मल्टी मीडिया सेट क्यूँ दिला देते हैं , आज के किशोर केवल पोर्न फिल्मों को देखने ही ये सेट खरीदते हैं . मैंने खुद ने सर्वे किया है की आज 98 प्रतिशत किशोर पोर्न मूवी देख रहे हैं , गांवों में भी स्थिति शहरों से कम नहीं है . मैंने एक दिन 12 की कक्षा के छात्रों के मोबाइल बगैर सूचना के चेक किये , कक्षा में घवराहट बढ़ गई , और मैंने पाया की 40 लड़कों में से 36 के मोबाइल सेटों में पोर्न मूवीज लोड करके रखी हैं , अब इनके माँ बाप को ये पता ही नहीं की उनके लल्ला और लल्ली ब्लू फिल्मो को देखने के आदि हो चुके हैं . इसी तरह कक्षा 9, 10 ,11 के छात्र भी ब्लू फिल्म्स देखते हैं .
मैं सभी आदरणीय अभिभावकों से आग्रह कर रहा हूँ की प्लीज़ अपने बच्चों पर आँख बंद कर भरोसा मत करो , इन्हें चेक भी करते चलो, और आप ज़रा सोचें की इन्हें अगर संवाद करना है तो सादा मोबाइल दिलाओ मल्टीमीडिया क्यूँ . कल ही मेरे पास एक पिता मेरे पास आये और उन्होंने बताया की उनका पुत्र 2 बजे रात्रि में पोर्न मूवी देख रहा था और उसकी उम्र केवल 14 साल है ,कक्षा 9 में पढता है .हाँ लड़कियों का प्रतिशत अभी बहुत कम है गाँवों में तो नगण्य है , शहरों की 10 प्रतिशत लडकियां पोर्न मूवीज को देख रही हैं .
ये मोबाइल की दुकाने हमारे नन्हे मुन्नों के दिमागों में अभद्रता और अश्लीलता भर रही है, आये दिन गेंग रेप जैसी घटनाएं हो रही हैं . जीवन के मूल्य ढह गए हैं . बच्चों को समझाया जाये की किशोराबस्था सुख प्राप्त करने का काल नहीं है, ये तो पढ़ाई कर जीवन को सफल बनाने का काल है . माँ बाप अपने बच्चों को अधिक सुखी देखने की चाह में उनकी सारी बातों को मानते चले जाते है , और नतीजा घातक हो चला है , ये किशोर नशा और अन्य लतों में फस रहे हैं , कई सम्यक भी है जो कर तो रहे हैं लेकिन माँ बाप को चूना लगा कर . जागने का वक़्त है हमें अपने बच्चों को प्यार से समझाने का तरीका रखना चाहिए और उन्हें अध्ययन के प्रति गंभीर करना चाहिए . उन्हें बताना चाहिए की विद्यार्थी को सुख की चाह नहीं श्रम के प्रति समर्पण और त्याग का भाव रखना चाहिए . संस्कृत में कहा गया है ----
सुखार्थी त्यजते विद्यां विद्यार्थी त्यजते सुखम् |
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