अब छतरपुर, टीकमगढ़ व शिवपुरी में भी मनरेगा घोटाला

भोपाल। प्रदेश में मनरेगा में गड़बड़ियों का सिलसिला लगातार जारी है। अब शिवपुरी, टीकमगढ़ और छतरपुर में योजना के क्रियान्वयन में कमियां और गड़बड़ियां उजागर हुई हैं।

भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम) भोपाल ने इन तीन जिलों में योजना के प्रभाव का आंकलन किया था। इसकी रिपोर्ट में ही कई गड़बड़ियों का खुलासा किया गया है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास की राज्य स्तरीय विजिलेंस और मॉनिटरिंग समिति के सदस्य अजय दुबे के अनुसार राज्य मनरेगा परिषद् वर्ष 2008 में आईआईएफएम भोपाल को 18 माह में जिला टीकमगढ़ ,छतरपुर और शिवपुरी में मनरेगा के कामों के आकलन कर रिपोर्ट बनाने का काम दिया था। आईआईएफएम ये रिपोर्ट बेहद विलंब से हल में ही जमा की है।

उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में योनजा के क्रियान्वयन में ढेरों अनियमितता सामने आर्इं हैं लेकिन राज्य सरकार जांच रिपोर्ट को उजागर नहीं कर रही है। रिपोर्ट के अनुसार इन तीनों जिलो में अधिकतर स्थानों पर योजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जबाबदेही की कमी है। न मस्टर रोल को सावर्जानिक नहीं किया जाता और न ही जॉब कार्ड समय पर नहीं मिलता है। मजदूरों को मजदूरी का भुगतान समय पर नहीं होता। बेरोजगारी भत्ता कही नहीं मिलता और बैंक कर्मी सहयोग नहीं करते है।

मनरेगा के क्रियान्वन के बावजूद इन जिलों में भारी मात्रा में मजदूरों का पलायन हो रहा है। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि इन जिलों में ग्राम सभा की बैठकों में ग्रामवासियों की भागीधारी सुनिश्चित नहीं की गई। निर्माण कार्यों की गुणवत्ता भी संतोषजनक नहीं है। कार्यस्थल पर चिकित्सा सुविधा और बच्चों की देखभाल की व्यवस्थाएं नहीं हैं। मजदूरी और सामग्री के लिए राशि खर्च करने के लिए निर्धारित मानक 60 अनुपात 40 का उल्लंघन किया जा रहा है।

इस प्रभाव आंकलन को जानने के लिए राज्य सरकार ने 44 लाख रुपए खर्च किए हैं। दुबे ने मांग की कि सरकार प्रभाव आकलन रिपोर्ट सावर्जानिक कर कायर्वाही करे। साथ ही प्रदेश में मनरेगा घोटालों की तत्काल सीबीआई से जांच कराई जाए।

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