राकेश दुबे@प्रतिदिन/ देश का चरित्र अजीब होता जा रहा है| जिस पर कभी हम सर्वाधिक विश्वास करते हैं कभी उसी पर सर्वाधिक अविश्वास| नागरिक अपने नेताओं का अनुसरण करते हैं ,बेचारे यह समझ ही नहीं पाते कि नेता कब और क्यों किसी मामले को सी बी आई को सौंपने की बात करते हैं| अभी ताज़ा मामला उत्तर प्रदेश के कुंडा में पुलिस के उप पुलिस अधीक्षक की हत्या का है|
जहाँ मुद्दई और मुद्दालेह दोनों ही सी बी आई से जाँच चाहते है| मध्यप्रदेश में भी ऐसे कई मामले है, जो वर्षों से दोनों पक्षों की संयुक्त मांग के बाद सी बी आई के पास है |जैसे सुश्री सरला मिश्रा हत्याकांड, रूसिया हत्याकांड आदि|
सीबीआई के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी का मानना है की उनके संगठन के पास अमला और साधन है नहीं और तो और उसे वैधानिक तौर पर भी दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना कानून के अंतर्गत काम करना होता है| जहाँ राज्यों से आये मामले मुश्किल से आगे बढ़ते हैं| तब तक राज्यों से वे लोग केंद्र तक पहुंचने में या अपनी पहुंच लगाने में कामयाब हो जाते हैं| जिन पर राज्य में शक की सुई होती है | मामला रिकार्ड रूम से आगे नहीं बढ़ता है|
केंद्र रूचि दिखाए, तो भी सी बी आई को राज्य की पुलिस और उसके द्वारा खींचे गये रोड मेप से ही गुजरना होता है| यह रोड मेप राजनीतिक कारणों से कभी सुगम तो कभी दुर्गम होता है| उत्तर प्रदेश के मामले तो बड़ी संख्या में सी बी आई के पास लम्बित है| केंद्र की उत्तरप्रदेश सबसे अधिक रूचि पहले और अब भी सिर्फ राजनीतिक संतुलन बिठाने में है| एक बात और सी बी आई में मामले भेजने की मांग और आदेश की खबर तो मिलती है, कभी सी बी आई उन मामलों पर श्वेत पत्र जारी नहीं करती जो उसके पास वर्षों से लम्बित हैं।