हैदराबाद: पहले दर्द अब दवा बाँटती सरकार

प्रतिदिन@राकेश दुबे/ हैदराबाद में दिल्ली की सरकार भी हो आई, आंध्र की सरकार तो वहां है ही| कल दिल्ली का मीडिया कुछ और नेताओं के जाने की सूचना दे रहा था| सिर्फ प्रधानमंत्री ही गये, हमेशा की तरह आश्वासन दे आये | और वे बेचारे, कर भी क्या सकते हैं ? जिन्हें करना था या जिन्हें करना है, वे सोच रही हैं|

मुंबई में हुए हमले के बाद बार-बार सूट बदलते गृह मंत्री का सूटकेस बमुश्किल पैक हुआ था| अभी इनसे दिल नहीं भरा है, जिनके दिल भरे हैं , वे हैदराबाद में कभी बम रखने वालों को तो कभी सरकार को कोस रहे हैं|

आंध्र प्रदेश की सरकार आतंकवाद रोकने के नाम पर केंद्र से पैकेज ले चुकी थी, ले रही है और लेती रहेगी| केंद्र सरकार देती थी देती है और देती रहेगी| इस लेन –देन में वह सब खोता जा रहा है| जिसे सजगता और शांति कहा जाता है| दोनों ही सरकार के कारिंदे मीडिया पर चिल्ला चिल्ला कर कह  रहे हैं| जेल में बंद कुछ लोगों से कुछ लोगों ने मुलाकात कर दिलसुख नगर की रेकी की| सवाल यह है की आज यह सब कहने वाले उस दिन कहाँ थे? जब तथा कथित मुलाकात जेल में हुई थी|

अब जो हो रहा है, वह स्यापे के आलावा कुछ नहीं है| स्यापा हैदराबाद के उन लोगों को करने दो| जिनने अपने खोये है| सरकार कुछ कर  सकती थी, पर उसे सुझा ही नहीं| आज विस्फोट के बाद दौरा करके दवा बाँटती सरकार अलर्ट के बाद दौरा करती तो सुस्त व्यवस्था चुस्त होती| सरकारे बाद में दौरा करती है और यह भी कहती है की हमे पहले से मालूम था, ईमानदारी नहीं है| ईमानदारी व्यवस्था में परिवर्तन की है चाहे परिवर्तन अधिकारी स्तर पर हो या मंत्री स्तर पर|


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