कुपोषित आसूचना ही हैदराबाद कांड कराती है

राकेश दुबे@प्रतिदिन। जब भी देश में कुछ अनहोनी घटी सबने केन्द्रीय आसूचना ब्यूरो [आईबी] को कोसा। यह पहला मौका है, जब केंद्र और राज्य यह मानने को तैयार है कि उनके पास सूचना थी फिर यह सब क्यों हुआ ?

बहुत सारे पक्षों पर विचार और मंथन के बाद जो नतीजे सामने आये हैं, वे इस दिशा की ओर इशारा करते हैं कि सूचना पुष्ट करने के चक्कर में  स्थानीय खुफिया तंत्र समय गवां देता है और कुछ भी हो जाता है। केंद्र से आई सूचना को राज्य अपुष्ट मानता है और राज्य की सूचना की केंद्र में कद्र नहीं होती।

26/11 के बाद केंद्र ने यह संकल्प लिया था की अब और नहीं। हुआ इसके विपरीत केंद्र देश के भीतर और देश की सीमा पर जो हुआ वह  शर्मनाक है। रा, आई बी और अन्य ऐसे ही दस से अधिक छोटे बड़े संस्थान इस काम के लिए खड़े तो किये गए हैं, परन्तु सबके सामने साधनों की कमी संकट की तरह खड़ी है। राजनीतिक इच्छा शक्ति इन्हें सिर्फ अपने विरोधियों तक सीमित रखने की दिखाई देती है। इन संस्थानों में कहीं  स्टाफ की कमी है, किसी के पास बजट की कमी है किसी के पास अधिकार की।

हमारे देश के नेता आज तक इस विषय पर कोई एक राय नहीं बना सकें। जब कुछ घटता है तो एक केन्द्रीय समन्वय समिति की बात उठती है। अब उसके गैर यूपीए सरकारों की अनिच्छा जैसा जुमला भी जोड़े जाने लगा है। राज्य और केंद्र दोनों को सोचना चाहिए कि सुरक्षा दोनों की प्राथमिक और सम्मिलित जवाबदारी है। देश के भीतर भी और सीमा पर भी। चुनौतियाँ दोनों और सिर उठाये है। माओवादियो और हिंसक गुटों के बीच संयुक्त बैठकों की सूचना भी है। आसूचना तंत्र से आई सूचना पर फौरन काम करने के साथ इन तंत्रों को पुष्ट बनाना भी दोनों सरकारों का काम है।


  • लेखक श्री राकेश दुबे प्रख्यात विचारक एवं स्तंभकार हैं। 

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!