प्रतिदिन/ राकेश दुबे/ भारत में राजनीतिक साहस की कमी होती जा रही है| इसी कारण घोटाले ही घोटाले दिखाई दे रहे हैं| पक्ष-प्रतिपक्ष दोनों ही घोटाले के संरक्षक बने हुए हैं| इस पर तुर्रा यह कि दोनों एक दूसरे को भ्रष्टाचार से सराबोर कहते हैं| देश के बारे में सोचने कि जगह राजनीतिक बुद्धि का इस्तेमाल घोटाला करने या करवाने या उसे दफनाने में हो रहा है|
कुछ तो ऐसे उस्ताद भी है जो घोटाले के पहले और बाद में उसकी हवा तक नहीं लगने देते| एक अकेले डॉ. सुब्रमणियास्वामी कितने मुकदमें लगायेंगे| कोई पहले सुनता नहीं और न्यायालय के आदेश के बाद भी उस पर कोई गौर फरमाने की जरूरत नहीं समझता|
ऐसा लगने लगा है कि देश किसी भयंकर घोटाले में आ गया है| नरेन्द्र मोदी जैसे १५ मुख्यमंत्री और डॉ. सुब्रमणियास्वामी जैसे १० राष्ट्रवादी आगे आये तो कुछ होगा| सत्ता और प्रतिपक्ष तो घोटालों कि प्रतिस्पर्धा में लगा है कि हममे बड़ा कौन? किसी के शीर्ष स्तर से पदाधिकारी इसीलिए हटाये जाते हैं, और किसी के शीर्ष पर आगे पीछे घोटालों के नित नये विशेषण जुड़ते हैं|अब तो कुछ करना ही चाहिए, अरे! दूसरे देश के लोग भारत के घोटालों कि खबर दे रहे हैं|
देश में दलाली और रक्षा सौदों में दलाली कि बात जवाहर लाल नेहरु के जमाने से चल रही है| अब नेहरु जी जैसे दमदार प्रधानमंत्री नहीं हैं, जो संसद के सदन में इस अपराध के खिलाफ सीधी कार्रवाई कर सकें|ताजा मामला हेलीकाप्टर खरीदी में दलाली का है|रोम में गिरफ्तारी के बाद हमने बमुशिकल सी बी आई जाँच कि सिफारिश की है| कई सारे मामले पहले से सीबीआई के पास हैं| कुछ जाँच में और कुछ महज विरोधियों को चमकाने के लिए| राजनीतिक लोग अपने इस चरित्र से मुक्त नहीं हुए तो देश घोटाले में चला जायेगा|