कुम्भ के आने के राजनीतिक फलितार्थ होते हैं, यह परिपाटी भारत में इस इलाहाबाद कुम्भ से डलने जा रही है| इस बार के कुम्भ ने कई पुराने मुद्दों को जिन्दा ही नहीं किया वरन अमल में भी ला दिया | राम मन्दिर का मुद्दा विश्व हिन्दू परिषद गर्म करने जा रही है |
इसकी खबर डेढ़ माह पूर्व जब दिल्ली के साऊथ ब्लाक में घूमी तो गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को इसकी काट ढूंढने को कहा गया |उन्होंने काट निकाली- अजमल कसाब| कुम्भ में जब राजनाथ कुछ कह आये, अशोक सिंहल कुछ बोले और संत समाज चीखा, तो इसकी प्रतिध्वनि गूंजी –अफजल गुरु | अगर ऐसा ही हुआ है, तो ठीक नहीं |हाँ, ऐसा नहीं हुआ है, और सिर्फ २०१४ के चुनाव में हिन्दू वोट कबाड़ने की नीयत से भाजपा और कांग्रेस ने कुछ ऐसा किया है तो यह और भी गलत है| कम सेकम किसी प्रजातंत्र की लिये तो बहुत गलत हुआ है |
लेकिन, अगर आतंकवाद और विशेषकर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को जवाब देने की नीयत से महामहिम राष्ट्रपति ने रातोंरात अफजल गुरु की फ़ाइल् पर निर्णय लिया है और गृह मंत्री ने बिना प्रचार के इनको न्यायालय द्वारा दी गई सजाएं क्रियान्वित की हैं| दोनों देश की और से धन्यवाद के पात्र हैं |
कोई भी राजनीतिक दल हो या सरकार उसकी पहली प्राथमिकता देश होनी चाहिए| कांग्रेस और भाजपा तो बाद की बात है | मुद्दे तो किसी शांतिपूर्ण आन्दोलन से भी उपज सकते हैं | देश को आतंकवाद से मुक्ति की दिशा में उठाये इन कदमों की आलोचना और बेवजह की बहस भी उन लोगों के लिए बेमानी है जिन्होंने अपनों को संसद में या होटल ताज में खोया है | राजनीतिक विषय निर्णय में देरी से उपजते हैं ,इन दोनों मामलों से यही उपजता है | राष्ट्रपति कार्यालय ने यह साबित कर दिया है, वह सजीव है और गृह मंत्रालय ने यह प्रमाणित किया है कि वह मुस्तैद है | और चूक तो सभी से होती है |