भोपाल। टारगेट पूरा करने के लिए क्या क्या फर्जीवाड़ा किया जाता है, इसका एक उदाहरण एसबीआई जैसे प्रख्यात बैंक में भी देखने को मिला जहां एक स्टूडेंट ने एज्यूकेशन लोन का क्या ले लिया, उसे जबरन बीमा पॉलिसी जारी कर दी। स्टूडेंट को तो तब पता चला जब पॉलीसी की डिलेवरी हुई।
भारतीय स्टेट बैंक गुना से उच्च शिक्षा ऋण लेने वाले छात्र का कब बीमा कर दिया गया, उसे पता ही नहीं चला। तुलसी कालोनी निवासी आदित्य टांटिया ने मई 2011 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से 9 लाख का उच्च शिक्षा ऋण स्वीकृत कराया था। हाल ही में उन्हें पता चला कि एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी द्वारा इसी लोन के विपरीत 4.50 लाख का बीमा भी कर दिया गया। मजे की बात यह है कि बीमा पॉलिसी दिसंबर में जारी की गई।
इस पर उनके साइन जिस तारीख को किए जाना दर्शाए गए हैं, वे तब शहर में ही नहीं थे। उस दौरान आदित्य जयपुर स्थित अपने कॉलेज में थे। उन्होंने आरोप लगाया है कि पॉलिसी के कागजातों पर उनके हस्ताक्षर तक नहीं हैं। बैंक के प्रबंधक एसके श्रीवास्तव से जब इस संबंध में बात की गई, तो उन्होंने कहा कि वे लंबे समय से छुट्टी पर हैं, लेकिन उक्त ऋण प्रकरण उनके द्वारा ही स्वीकृत किया गया था। लेकिन उन्होंने दिसंबर में जारी हुई बीमा पॉलिसी के संबंध में कोई भी जानकारी होने से इंकार किया।
उन्होंने कहा कि बड़ी राशि के ऋणों में संबंधित का बीमा किया जाता है, लेकिन इसमें उसकी सहमति ली जाती है। उधर लीड बैंक प्रबंधक नवीन कुमार जैन ने भी आश्चर्य जताया कि शिक्षा ऋण में 45 हजार रुपए प्रीमियम वाली बीमा पॉलिसी कैसे जारी कर दी गई? उन्होंने कहा कि छात्र अगर शिकायत करता है तो इस पर कार्रवाई होगी। पॉलिसी के कागजातों पर छात्र की मासिक आय तक दर्शाई गई है। जबकि वर्तमान में वह शिक्षा प्राप्त कर रहा है, जिसके लिए उसने ऋण लिया हुआ है।