हुज़ूर मै अब भी जिंदा हूँ

आरपी कस्तूरे/ अंग्रेजो के जमाने से चला आ रहा यह कानून आज भी चल रहा है। हर पेंशन पाने वाले बुजुर्ग को हर वर्ष गजेटेड अफसर से यह सत्यापित करवाना होता है कि वह जिंदा है। आजकल कोई राजपत्रित अधिकारी सड़क पर तो नहीं मिलता इस राजपत्रित बुजुर्ग को अपने सिखाये हुये अब राजपत्रित बने अफसरो से जीते जी यह प्रमाणित करने की गुहार लगानी पड़ती है कि वह जिंदा है। प्रमाणित कर दो। क्या मज़ाक है ? जिंदा व्यक्ति को भी हर वर्ष यह सत्यापित करवाना होता है कि वह जिंदा है। 

आज हम किसी के गुलाम नहीं है, हर वर्ष 26 जनवरी और 15 अगस्त को हमे यह याद दिलाया जाता है। फिर मै अब भी जिंदा हूँ कि प्रमाण पत्र की क्या जरूरत है? जबकि अंतिम संस्कार के स्थान पर मरे व्यक्ति की मरने के इस घटना को इंद्राज करना पड़ता है? सरकार नगर निगम या नगर पालिका से यह प्रमाण पत्र क्यो नहीं लेती कि कोनसा पेंशन पाने वाला व्यक्ति कब मर गया। पेंशन पाने वाला चल नहीं सकता घूम नहीं सकता इस अवस्था मे भी उसे हर वर्ष उसे " मै जिंदा हूँ" के प्रमाण पत्र के लिए उन व्यक्तियों के सामने जो क्यो गुहार लगानी पड़ती है कि " हुज़ूर मै अब भी जिंदा हूँ "

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