नरवर के नतीजे: भाजपा ने जितने बांटे नोट, उतने भी नहीं मिले वोट

भोपाल। नतीजे नरवर के हैं, लेकिन प्रभावित शिवपुरी हुआ है। इस चुनाव में शिवपुरी की राजनीति के सारे गुट बड़े साफ साफ दिखाई दिए। प्रत्याशी चयन की मनमानी के बाद नतीजा यह हुआ कि एक व्यापारी परिवार ने भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में जितने नोट बांटे, उतने वोट भी भाजपा को नहीं मिले। 


बात को घुमाफिराकर कहने के बजाए सीधे जड़ दिया जाए तो कोलारस विधायक देवेन्द्र जैन और शिवपुरी के जिला पंचायत अध्यक्ष जितेन्द्र जैन गोटू की टिकिट वितरण के दौरान की गई मनमानी का भाजपा ने ही जबर्दस्त विरोध किया। जिलाध्यक्ष रणवीर रावत सहित भाजपा के तमाम बड़े नेताओं ने इस चुनाव से सीधे किनाराकशी कर ली थी। 

मूलत: तेंदूपत्ता व्यापारी जैन बंधुओं को यह बहुत पहले से ही मालूम था अत: उन्होंने भी अपनी ताकत झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शिवपुरी में चर्चा तो यह भी है कि नरवर के चुनाव में प्रत्याशी ने चुनाव आयोग को खर्चा जो भी बताया हो परंतु कुल मिलाकर 80 लाख रुपए खर्चा किया गया। पूरी ताकत झोंक दी गई, लेकिन फिर भी हालत पतली की पतली। मुनीमों ने जिस हिसाब से पैसा बांटा उसके अनुसार उन्होंने 5000 वोट खरीदे थे, इसके अलावा भाजपा के पारंपरिक वोट मिलने थे सो अलग, लेकिन जब गिनती शुरू हुई तो वोटों का कुलयोग 2500 भी नहीं था। 

नरवर के सूत्र तो यहां तक बता रहे हैं कि व्यापारियों ने यहां वोट खरीदने की प्रक्रिया पर काम किया। सर्द अंधेरी रातों में मोहल्लों और समाजों के नेताओं को बुलाया गया और थोकबंद वोट खरीदे गए, नोट थमाए गए। लोगों ने नोट गिने भी और वोट भी दिए, लेकिन भाजपा के पार्षदों को। अध्यक्ष के मामले में पब्लिक ने सुनी दिल की आवाज। 

नरवर के नतीजे भाजपा को एक साथ कई सबक दे गए। यदि भाजपा ने इन बिन्दुओं पर ध्यान नहीं दिया तो मुश्किलें तो बढ़ेंगी हीं, बगावत को भी कोई नहीं रोक पाएगा और जिस तरह की छुराघुपाई नरवर में हुई है, यदि पूरे मध्यप्रदेश में हो गई तो फिर भाजपा फिर शिवराज केवल फ्लेक्स पर ही दिखाई देंगें। 

जाते जाते हम वो बिन्दु भी बता जाते हैं जिनपर ध्यान दिया जाना चाहिए

  • भाजपा को व्यापारियों के चंगुल से मुक्त कराएं और जमीनी कार्यकर्ताओं को संगठन की कमान सौंपें। पार्टी को चंदा देने वाले व्यापारियों को संरक्षण तक ही सीमित रखा जाए। यदि उन्हें नेता बना दिया तो वो अपनी आदत के अनुसार सौदेबाजी ही करेंगे और अंतत: कार्यकर्ताओं को बगावत करना ही होगी। 

  • क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओं की सूची को दुरुस्त कर लें एवं विधानसभा से नीचे तक सच्चे और अच्छे प्रभावशालियों को शामिल करें, महत्व देना शुरू करें। यदि नरवर में मनोज को भाजपा टिकिट दे देती तो यह सीट भाजपा के पास होती परंतु ऐसा नहीं हुआ और मनोज भाजपा से बगावत कर जीत गया। 

  • डरना सीखें, यह तय मानकर नहीं चलें कि आज कांग्रेस में कोई धनीधोरी नहीं है तो अचानक कोई पैदा भी नहीं होगा। चुनावी राजनीति कई चमत्कार कर डालती है और कई बार दूर से विजयी दिखाई देने वाला प्रत्याशी केवल इसलिए हार जाता है क्योंकि टिकिट मिलते ही वो डरना छोड़ देता है और उसका बदला व्यवहार या उसका ओवर कान्फीडेंस उसकी ही टीम को उसके खिलाफ कर देता है। 

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