जो बात धारदार है , वो जोर से कहो

देश एक महत्वपूर्ण बहस में उलझा हुआ है,बहस का विषय “नारी अस्मिता और दुष्कृत्य” है, बड़ी मुश्किल है और उन लोगों की तो और भी मुश्किल बड़ी है जिनका समाज से सीधा सरोकार है | बुरी हालत है कहा भी न जाए और चुप रहा भी न जाए | कुछ लोग ऐसे भी जो अपने क्षेत्र से ज्यादा दूर निकल कर बोलते है, कुछ लोग कहते कुछ है अर्थ कुछ और निकलता है और कुछ बेचारे ऐसे है जो कहते है वह मीडिया की समझ से परे हो जाता है और कुछ ऐसे भी जो हमेशा मीडिया पर सन्दर्भ हीन व्याख्या का आरोप लगाते रहते हैं |

यह विषय दिल्ली दुष्कृत्य कांड के बाद मीडिया के प्रभाव से विश्व व्यापी हो गया और इसमें कुछ ऐसे मासूम लोगों की आवाज़ दब गई , जिन्हें वास्तव में न्याय और उनके साथ दुष्कृत्य करने वालों को कठोरतम दंड देने से किसी को गुरेज़ नहीं होना चाहिए | ऐसे मामले देश के हर किसी कोने में हुए हैं | कुछ मासूम जान दे चुकी है, कुछ अभी भी अस्पताल में हैं |इनके साथ दुष्कृत्य करने वाले इस समाज का अंग होते हुए भी “फरार” है | यहाँ बात उन पीड़ित बहन-बेटियों की हो रही है | जो घर से निकलना तो दूर बचपन से भी नहीं निकली, वो माँ जिसने अपने सतीत्व की रक्षा करते हुए उम्र गुजार दी | पश्चिम की वेशभूषा तो दूर, उसका नाम भी नहीं सुना| उनके लिए किसी ने कुछ कहा नही, किसी ने कुछ किया नहीं|

अभी कुछ लोग चर्चा में है इस विषय को लेकर – जैसे संत आशा राम जी, राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ के सर संघचालक मोहन जी भागवत, सेवा निवृत न्याय मूर्ति श्री जे एस वर्मा | भरतपुर राजस्थान में आशा राम जी ने जो कहा वह दिल्ली दुष्कृत्य कांड पर एक घिनौनी टिप्पणी की संज्ञा पा रही है | वे संत कहलाते है, दुनियादारी के विषय में भी ज्ञान देते हैं | समाज को उनसे संस्कार की अपेक्षा रहती है | मोहन जी भागवत ने इण्डिया और भारत के जिस विभेद की बात कही साफ दिखता है | 

यहाँ मीडिया के साथियों को यह विचार करना चाहिए कि मोहन जी, कुशल संगठक डाक्टर जी, और युग दृष्टा परम पूज्य गुरु जी की अध्ययन शाला के ध्वज वाहक है | उनकी बातें भारत के परम वैभव की अवमानना कर ही नहीं सकती ? इन दोनों संदर्भों से कई लोग सहमत,असहमत हो सकते हैं, परन्तु न्याय मूर्ति जे एस वर्मा की बात अर्थात आयोग की रिपोर्ट इस दिशा में बनने वाले उस कानून की नींव होगी जो भारत के भाल से इस कलंक के टीके को साफ करेगी और कश्मीर से कन्याकुमारी तक इस विषय पर एक समान न्याय दंड को परिभाषित करेगी |

इस बहस और मुबाहसे के दौर में ये पंक्तियाँ मौजूं है :-

जो बात धारदार हो , वो जोर से कहो ,
वरना बिखेर देंगे ये ज़ालिम दुभाषिये
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