भोपाल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं जनजातीय मामलों के पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने आज जारी बयान में कहा है कि विभिन्न प्रकार की पंचायतों और नौटंकियों के आयोजन में प्रदेश की भाजपा सरकार इतनी अधिक व्यस्त हो गई है कि उसने प्रदेश के सवा करोड़ आदिवासियों की तरफ से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है।
प्रदेश के इस सबसे अधिक पिछड़े समुदाय तक विकास कार्यक्रमों के लाभ पहुंचाना अब उसकी चिंता का विषय नहीं रह गया है। यही कारण है कि पिछले वित्तीय वर्ष 2011-12 में आदिवासी विकास के बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च नहीं किया गया। चालू वित्तीय वर्ष 2012-13 में भी करीब आधा बजट लैप्स होने के आसार साफ दिखाई दे रहे हैं। आपने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार ने आदिवासियों और आदिवासी क्षेत्रों को बदहाली में ही रखने का फैसला कर लिया है।
आदिवासियों के विकास के लिए स्वीकृत अरबों का बजट इस तरह वर्ष-दर-वर्ष खर्च न किये जाने से आदिवासियों के प्रति राज्य सरकार की निष्क्रियता और उदासीनता को जाहिर करता है। शिवराज सरकार ने प्रदेश के आदिवासियों को विकास के मामले में शायद ‘सबसे पीछे’ रखने का कोई फैसला ले लिया है।
श्री भूरिया ने कहा है कि श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधान मंत्री काल में आदिवासियों और आदिवासी क्षेत्रों के चैमुखी विकास के लिए आदिवासी उपयोजना कार्यक्रम (टीएसपी) प्रारंभ हुआ था। इस कार्यक्रम के लिए बजट भारत सरकार से राज्य सरकार को मिलता है। राज्य सरकार के विकास विभाग इस बजट से आदिवासी विकास की विभिन्न योजनाएं संचालित करते हैं। आपने कहा है कि चालू वित्तीय वर्ष 2012-13 में केंद्र सरकार ने उपयोजना कार्यक्रम के अंतर्गत म.प्र. सरकार को करीब 5,265 करोड़ रूपये का बजट दिया है, लेकिन राज्य स्तर से लेकर ब्लाक स्तर तक व्याप्त प्रशासनिक लापरवाही और निष्क्रियता के कारण अब तक 2,356 करोड़ रूपये ही खर्च हुए हैं। यह कुल प्राप्त बजट का करीब 45 प्रतिशत होता है अर्थात चालू वित्तीय वर्ष के 10 महीनों में सरकार ने केवल 55 प्रतिशत बजट ही खर्च किया है, जबकि राज्य से परियोजना स्तर तक आदिवासी विकास के लिए विभागों के अधीन अधिकारियों और कर्मचारियों की एक बड़ी फौज तैनात है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि राज्य सरकार का नीति निर्णय है कि प्रदेश के सालाना बजट की 21 प्रतिशत धनराशि आदिवासियों और आदिवासी क्षेत्रों के विकास पर खर्च की जाएगी। भाजपा सरकार इस निर्णय के सर्वथा विपरीत आचरण कर रही है। पिछले वित्तीय वर्ष में भी आदिवासी विकास की बड़ी धनराशि लैप्स हुई थी। आपने कहा है कि बजट के खर्च की इस साल की धीमी रफ्तार को देखते हुए इस वर्ष भी केंद्र से प्राप्त बजट की बड़ी राशि लैप्स होने का खतरा स्पष्ट दिखाई दे रहा है। इस लापरवाही और निष्क्रियता के लिए आदिमजाति कल्याण विभाग के अलावा वे सारे विभाग जबावदार हैं, जिन्हें इस वर्ष आदिवासी उपयोजना मद से बजट मिला है। इनमें ऊर्जा, लोक निर्माण, स्कूल शिक्षा, पंचायत, आदिम जाति कल्याण, ग्रामीण विकास, जल संसाधन तथा महिला एवं बाल विकास तथा कृषि विभाग प्रमुख हैं।
आपने कहा है कि आदिवासियों के विकास के प्रति भाजपा सरकार द्वारा बरती जा रही इस उपेक्षा के कारण बड़ी संख्या में आदिवासी लोग अपने गांव छोड़कर रोजगार की तलाश में पड़ोसी राज्यों की तरफ पलायन कर रहे हैं। आदिवासी उपयोजना के विकास कार्य प्रायः ठप्प हो चुके हैं। आदिवासी क्षेत्रों की शिक्षा व्यवस्था का तो कोई पुरसानेहाल नहीं रह गया है। बजट मौजूद होते हुए भी भवन निर्माण न होने के कारण आदिवासी बच्चों के स्कूल टपरों में लग रहे हैं। शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए जो उत्कृष्ट शिक्षा संस्थाएं कांगे्रस शासन काल में खुली थीं, वे अव्यवस्था और उपेक्षा के शिकार हो रही हैं। केंद्र सरकार ने एकलव्य विद्यालयों के भवन निर्माण के लिए जो 145 करोड़ राज्य सरकार को दिये थे, उनका अभी तक उपयोग नहीं हुआ है । नतीजन बच्चे असुविधाओं के बीच पढ़ाई के लिए मजबूर हैं।
श्री भूरिया ने राज्यपाल से आग्रह किया है कि संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आदिवासियों के संवैधानिक संरक्षक होने के नाते वे विकास के मामले में राज्य के आदिवासियों की उपेक्षा की इस चिंताजनक स्थिति का तत्काल संज्ञान लेकर स्थिति की स्वयं विभागवार समीक्षा करें। आपने आदिवासियों एवं प्रशासन के संबंध में मुख्य मंत्री की अध्यक्षता में गठित संवैधानिक समिति म.प्र. आदिमजाति मंत्रणा परिषद की अविलंब आपात बैठक बुलाकर उसमें इस गंभीर स्थिति पर विचार करने के राज्य सरकार को आदेशित करने का अनुरोध भी राज्यपाल से किया है।