भोपाल। मंहगाई से बिलबिलाते भारत के लिए यह शायद संवेदनशील मुद्दा न हो लेकिन वन्यप्राणी प्रेमियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में जुटे कार्यकर्ताओं के लिए यह महत्वपूर्ण मामला है कि मध्यप्रदेश की शान समझे जाने वाले कान्हा नेशनल पार्क में 47 चीतलों की मौत भूख से तड़पते हुए हो गई। पीएम रिपोर्ट के बाद यह साफ हो गया है।
वनविभाग में चरम स्तर पर चल रहे भ्रष्टाचार के मामले केवल इसलिए प्रकाश में नहीं आते क्योंकि वो इंसानों से कम जानवरों से ज्यादा रिलेटेड होते हैं और अपने बच्चों के भरणपोषण में जुटी जनता, जानवरों के साथ हो रहे अत्याचार पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने का समय नहीं निकाल पाती।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर रहे तमाम कार्यकर्ता भी सरकार के लगभग हर उस महकमे को टारगेट करते हैं जो जनता से जुड़ा हो, लेकिन जानवरों से जुड़ा वनविभाग उनके टारगेट पर भी नहीं है और यही कारण है कि विभाग में मनमानियों का दौर लगातार जारी है।
इसी के चलते कान्हा नेशनल पार्क के मुक्की गेट के पास घोरेला बाड़े में रखे गए 200 चीतलों में से पिछले दिनों 47 चीतलों की मौत भूख के कारण हो गई। वन्य जीव प्रेमियों का आरोप है कि इस 60 हैक्टेयर के बाड़े में 20 दिन पूर्व 200 चीतलों को रखा गया था किंतु यह सुनिश्चित नहीं किया गया कि वहां पर उपलब्ध घास आदि चीतलों के लिए पर्याप्त है अथवा नहीं।
अपर्याप्त भोजन के कारण चीतल लगातार कमजोर होते गए अंतत: बीते सप्ताह एक के बाद एक 47 चीतलों की मौत हो गई। गौरतलब है पार्क प्रबंधन द्वारा डेढ़ वर्ष के दो अनाथ बाघ शावकों को स्वाभाविक शिकार सिखाने के लिए इस बाड़े में रखा गया था और चीतल भी इसी उद्देश्य से यहां बंद किए गए थे।
पार्क प्रबंधन ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए हालांकि इसकी जांच के लिये वाईल्ड लाईफ सांईटिस्ट डां. एबी श्रीवास्तव को भी पार्क बुलाया है लेकिन फौरी तौर पर पार्क प्रबंधन के सभी दावे इन मौतो को लेकर सवाल खड़े कर रहे है। कान्हा में एक 60 हैक्टेयर के बाड़े में हुई हिरण प्रजाति के इस दुर्लभ जीव की मौत को पी.एफ.ए. बोर्ड के सदस्य कोचर ने अपनी लिखित रिपोर्ट में भुख के कारण हुई मौत बताया है।