ये ​कमिश्नर हैं या कर्मचारी नेता

shailendra gupta
भोपाल। नगर निगम के कमिश्नर रजनीश श्रीवास्तव पर इन दिनों जो आरोप लग रहे हैं, उनको देखते हुए यह समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि रजनीश श्रीवास्तव, नगर निगम में कमिश्नर हैं या कर्मचारी नेता। 

यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि रजनीश श्रीवास्तव इन दिनों सीधे महापौर परिषद से पंगा लिए हुए हैं वो भी दो ऐसे कर्मचारियों के लिए जो दूध के धुले नहीं है। बुधवार को एक बार फिर इन दो कर्मचारियों के कारण कमिश्नर को महापौर परिषद में कड़वे प्रवचन सुनने पड़े। 

इनमें से पहले हैं निगम के लेखा अधिकारी लालराम कोली। इन पर आरोप है कि श्री कोली ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए अपने बेटे योगेश शाक्य को वेक्सीनेटर से इंजीनियर बनवा डाला और रजनीश श्रीवास्तव पर आरोप है कि उन्होंने बतौर कमिश्नर उस फाइल की जांच करने के बजाए बतौर कर्मचारी नेता उस फाइल को आगे बढ़ा दिया। 

दूसरे अधिकारी हैं राजेश बिसारिया। श्री बिसारिया पर आरोप है कि उन्होंने नर्मदा प्रोजेक्ट में जमकर भ्रष्टाचार किया है। महापौर परिषद श्री बिसारिया को दण्डित करना चाहती है। एमआईसी ने उन्हें मूल विभाग में वापस भेजने का भी निर्णय ले लिया, लेकिन नगरनिगम केबीनेट के इस आदेश का निगम के सीएस पालन ही नहीं कर रहे। यहां भी उनका व्यवहार एक कर्मचारी नेता की तरह अपने कर्मचारी को बचाने जेसा है। वो नेताओं से पंगा लेने को तैयार हैं, लेकिन कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई कतई नहीं चाहते। 

श्री श्रीवास्तव के इस रवैए के चलते नगरनिगम के नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। देखते हैं वो दिन कब आता है जब नगर निगम में दो दल नहीं बल्कि दो गुटों के बीच नारेबाजी होगी। 

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