क्या प्रकृति संरक्षण पर भी सोचेंगे ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश में दीवाली के फटाके बहुत फूटे, उस पर राजनीति भी खूब हुई। मौसम का हाल बताती विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की हाल में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि 2016 के अंत में पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाई-ऑक्साइड के अनुपात में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2015 में यह वृद्धि पिछले दस वर्षों के औसत वृद्धि अुनपात से लगभग 50 प्रतिशत ज्यादा दर्ज हुई थी। एक अन्य रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की भी है, जो और भयावह निष्कर्ष पर पहुंचती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016 में हमारे वातावरण में कार्बन डाई-ऑक्साइड की मात्रा जिस भयावह तरीके से बढ़ी है, वैसा तो पिछले तीस लाख वर्षों में भी नहीं देखा गया। प्रतिष्ठित वैज्ञानिक प्रतिष्ठानों के अध्ययनों के निष्कर्ष हमें ऐसी भयावह तस्वीर दिखा रहे हैं, जिसके बाद माना जा सकता है कि अगली सदी में आते-आते हम बहुत ज्यादा बढ़ चुके तापमान के अभूतपूर्व संकट से जूझ रहे होंगे।

दिल्ली के साथ पूरे देश में इस साल गरमी का विस्तार अक्तूबर के अंत तक महसूस हुआ, जबकि आमतौर पर यह समय मौसम की नमी से सुहावना और सुखद हो चुका होता है। कुछ हालिया अध्ययन बताते हैं कि तेजी से हो रहे शहरीकरण से हमारा वन क्षेत्र लगातार इस तरह घटा कि कार्बन डाई-ऑक्साइड सोखने की उनकी क्षमता भी उसी अनुपात में कम होती गई। जलवायु परिवर्तन की स्थिति में जैसी तेजी आई है और जैसी अनियोजित-असुरक्षित आर्थिक गतिविधियां हम करते जा रहे हैं, उसने जमीन और महासागरों की कार्बन उत्सर्जन साफ करने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित किया है। ऐसे में, सबसे बड़ी जरूरत कार्बन उत्सर्जन सीमित करने और ऐसी नकारात्मक गतिविधियों को नियंत्रित के प्रति हमारी मजबूत प्रतिबद्धता की है, क्योंकि बिना इसके हम जलवायु परिवर्तन को खतरनाक मोड़ पर ले जाने का रास्ता ही देंगे। 

भारत ने 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा के क्षेत्र में भी अपनी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत तक बढ़ाने की योजना बनाई है। साथ ही अपना वन आच्छादित क्षेत्र बढ़ाकर कार्बन डाई-ऑक्साइड का स्तर काफी कम करने के लिए भी प्रतिबद्ध है। यह सब दृढ़ इच्छा शक्ति के बगैर संभव नहीं है। सरकार के अपने लक्ष्य और नीति होती है, उसे लागू करने और ठीक से लागू करने के पीछे सबसे बडी भूमिका नागरिकों की होती है। भारत में सरकार को अभी से लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और नागरिकों को सहयोग। खतरा भारत में ज्यादा है, देश का दुःख है, कुछ लोग प्रकृति संरक्षण को भी धर्म के चश्मे से देखते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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