RSS के भैयाजी ने बताया देश को किस पैमाने पर बांटा जाए

रायपुर। विजयदशमी उत्सव पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि देश को हिंदू-मुस्लिम के पैमाने पर नहीं, देशभक्त और देशद्रोही के पैमाने पर बांटने की जरूरत है। राजधानी के स्वामी विवेकानंद स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में रविवार को स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए भैयाजी ने कहा कि जो देश के विरोध में बोलेगा, वह देशद्रोही है। इसको राजनीतिक दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। डेढ़ घंटे के भाषण में वे रोहिंग्या से लेकर देश की आंतरिक सुरक्षा, गौहत्या, जैविक खेती, जलसंवर्धन और स्वच्छता अभियान पर भी बोले। रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर भैयाजी ने कहा कि म्यांमार से रोहिंग्या आए तो वहां हिंदुओं की हत्या हुई।

म्यांमार सरकार ने उनको खदेड़ा। अब कोई म्यांमार से चलकर कश्मीर पहुंच जाए और अपने अधिकारों की मांग करे, तो उसे कितना जायज माना जाएगा। रोहिंग्या को बाहर किया जाना चाहिए। उन्होंने इस मामले में केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के रुख का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि चुनाव तो कभी-कभी आते हैं। देश, समाज और आर्थिक हित के मुद्दे आते हैं, तो देशहित में सबको साथ देना चाहिए। भारत को कोई बांट नहीं सकता है। ना भाषा ना भौगोलिक सीमा के आधार पर। हमारी सेना सीमा पर मुस्तैदी से खड़ी है, उनके हाथ में आधुनिक हथियार हैं। कुछ राजनेता उनका मनोबल तोड़ने की कोशिश करते हैं। सेना को मजबूत करने की जरूरत है।

गौमाता आर्थिक विकास का आधार, इसलिए गौरक्षा जरूरी
भैयाजी ने कहा कि गौमाता आर्थिक विकास का आधार है, इसलिए देश में गौरक्षा जरूरी है। गौरक्षा को धर्म के आधार पर जोड़कर विवाद करना दुखद है। गौरक्षा किसी संप्रदाय के खिलाफ नहीं है। देश में बदलाव आया है। इस्लाम का एक वर्ग गौरक्षा की मांग कर रहा है। कुछ गलत लोगों के कारण गौरक्षा के क्षेत्र में सही काम करने वालों को प्रताड़ित नहीं करना चाहिए।

सामान खरीदने से पहले देखे, किस देश का बना है
उन्होंने कहा- भारत के उद्योगों के सामने संकट है। चीन के पटाखे से लेकर भगवान तक बाजार में उपलब्ध हैं। हमें ये देखना चाहिए कि किस देश का बना हुआ समान है। देश के आर्थिक तंत्र में सरकार ने कुछ नए प्रयोग किए हैं। अब छोटे उद्योगों के बारे में भी बड़े कदम उठाने की जरूरत है।

फसल के मूल्य निर्धारण के लिए हो वैज्ञानिक व्यवस्था
किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य देने की जरूरत है। फसल के मूल्य निर्धारण के लिए वैज्ञानिक व्यवस्था होनी चाहिए। किसान खेती के लिए कर्ज ले, लेकिन कर्ज लौटने की स्थिति में पहुंच जाए, ऐसी व्यवस्था करनी होगी। कर्जमाफी किसानों की आत्महत्या को रोकने का उपाय नहीं है। नीति निर्धारकों को जैविक खेती के विस्तार के बारे में सोचना चाहिए। सबको एक पौधा लगाना चाहिए, जिससे बारिश के लिए वातावरण बन सके।

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