सनातन धर्म में स्त्री जब मासिक धर्म या रजस्ख्ला (पीरियड) में होती है तब उसे सबसे अपवित्र माना जाता है। उस दोष निवारण हेतु वर्ष में एक बार ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। इस व्रत में सप्त ऋषि मंडल के सप्त ऋषियों का पूजन किया जाता है। जिससे उनके दोषों का निवारण होता है यह व्रत भाद्रपद शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। इस बार यह व्रत *26अगस्त दिन शनिवार को 11:06 मिनिट से 13:39 मिनिट तक मनाया जायगा।
ऋषि पंचमी कथा
ब्रम्हा जी ने इस व्रत की कथा नारद को इस प्रकार सुनाई जो व्रत के दौरान किसी ब्राह्मण से सभी स्त्रियों को सुनना चाहिये।
व्रत कथा
किसी नगर में एक ब्राह्मण पति पत्नी रहते थे। उनके एक पुत्र तथा पुत्री भी थी। पुत्री का विवाह उन्होने एक सम्भ्रांत कुल में किया लेकिन कुछ समय मॆ उनकी बिटिया विधवा हो गई। तब उसके जीवन निर्वाह के लिये वे उसे नदी तट पर एक कुटिया बनाकर रहने लगे समय बीतने पर ब्राह्मण कन्या के पूरे शरीर मॆ कीडे पढ़ने लगे तब ब्राह्मण ने किसी ऋषि से इसका कारण पूछा तो ऋषि ने ध्यान लगाकर बताया की तुम्हारी पुत्री ने पिछले जन्म मॆ मासिक धर्म के नियमों का पालन नही किया जिसके कारण इसे वैधव्य तथा बीमारी ने घेर रखा है। यदि यह भाद्रपदशुक्ल पंचमी (ऋषि पंचमी) के दिन सप्त ऋषियों का विधि विधान से पूजा करे तो उसके समस्त कष्टों का निवारण हो सकता है। ऋषि के कहे अनुसार करने पर वह ब्राह्मण कन्या मासिक धर्म के समय किये गये दोषों से मुक्त हुई तथा अंत मॆ उच्च लोकों में गमन किया।
कैसे करे
इस दिन सभी स्त्रियाँ जिन्हे मासिक धर्म आता है उन्हे यह व्रत करना चाहिये। ब्रम्हा मुहूर्त मॆ स्नान कर एक विशिष्ट वनस्पति की दातुन से दंत्धावन करने के पश्चात सप्त ऋषियों का पूजन पाठ करना चाहिये। तत्पश्चात सात ब्राह्मणों को भोजन या फल दान करना चाहिये। इस व्रत के करने से स्त्रियों को सौभाग्य की प्राप्ति तथा दोषों से छुटकारा मिलता है।
व्रत का उधापन
जब महिला की माहवारी बंद हो जाती है उस समय किसी भी ऋषि पंचमी को इस व्रत का उधापन किया जा सकता है। यह व्रत सभी कुआरी तथा विवाहित महिलाओं के श्रेष्ठ फलदायक है। इसे अपने सौभाग्य की वृद्धि के लिये अवश्य करना चाहिये।
प.चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"
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