MBBS व BDS कोर्स की सभी सीटें मप्र के मूल निवासियों के लिए आरक्षित

Bhopal Samachar
जबलपुर। हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश में साफ कर दिया है कि मध्यप्रदेश के मूलनिवासी छात्र-छात्राओं को ही एमबीबीएस व बीडीएस कोर्स में दाखिले दिए जाएं। इसी के साथ राज्य शासन, चिकित्सा शिक्षा सचिव व डीएमई को एक हफ्ते के भीतर अपना जवाब-दावा पेश करने समय दे दिया गया। गुरुवार को न्यायमूर्ति आरएस झा व जस्टिस नंदिता दुबे की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। दोपहर 2.30 बजे से शाम 5 बजे तक मैराथन बहस चली। याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी अधिवक्ता सतीश वर्मा की बेटी तरीषी वर्मा की तरफ से ग्रीष्म जैन ने और जनहित याचिकाकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता विनायक परिहार की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा। जबकि राज्य शासन की ओर से महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव खड़े हुए।

मूलनिवासियों का हक मारना व्यापमं घोटाले का दूसरा रूप
याचिकाकर्ता व जनहित याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि मध्यप्रदेश के मूलनिवासी छात्र-छात्राओं को एमबीबीएस व बीडीएस की सीटों से वंचित करने का अनुचित रवैया व्यापमं घोटाले के ही दूसरे रूप की तरह लिया जाना चाहिए।

कायदे से शासकीय मेडिकल-डेंटल कॉलेजों में दाखिले की प्रक्रिया के अंतर्गत मध्यप्रदेश के मूलनिवासी छात्र-छात्राओं को उनकी मैरिट के हिसाब से लाभ मिलना चाहिए। लेकिन इस बार सुनिश्चित नियम के बावजूद बड़ी चालाकी से प्रदेश के बाहर के छात्र-छात्राओं के जरिए सीट ब्लॉक करने का खेल खेला गया है।

यह तरीका डेडलाइन के साथ ब्लॉक की गई सीटें मोटी रकम लेकर रसूखदारों के बच्चों को बेचे जाने की मंशा से अपनाया गया है। आपत्ति का एक अन्य बिन्दु यह भी है कि काउंसिलिंग की अंतिम सीमा 30 सितम्बर है, इसके बावजूद पहले दो चरण की काउंसिलिंग बिजली सी गति से आयोजित कर ली गई। इससे साफ है कि नीट परीक्षा जैसी बेहतर व्यवस्था के बावजूद मध्यप्रदेश में मेडिकल दाखिले घोटाले की बलि चढ़ाने का खेल रुका नहीं है।

26 अगस्त से शुरू हो रही काउंसिलिंग नियमानुसार हो
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपने आदेश में साफ कर दिया कि 26 अगस्त से शुरू हो रही तीसरे चरण की काउंसिलिंग 11 जुलाई 2017 को राजपत्र में प्रकाशित रूल्स के शत-प्रतिशत अनुरूप आयोजित की जाए। इसमें नीट परीक्षा उत्तीर्ण आवेदकों को शामिल करके योग्यता के हिसाब से एमबीबीएस-बीडीएस सीटें आवंटित की जाएं।

क्या था हाईकोर्ट का पूर्व आदेश
26 सितम्बर 2016 को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आरएस झा व जस्टिस सीवी सिरपुरकर की युगलपीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया था। जिसके जरिए यह साफ कर दिया गया था कि भविष्य में केवल मध्यप्रदेश के मूलनिवासी छात्र-छात्राओं को ही एमबीबीएस-बीडीएस सीटों पर दाखिला दिया जाए।

इसके बाद नीट-2017 का आयोजन किया गया। जिससे पूर्व मध्यप्रदेश शासन ने 5 जुलाई 2017 को मध्यप्रदेश शासकीय चिकित्सा एवं दंतचिकित्सा (एमबीबीएस/बीडीएस) पाठ्यक्रम में प्रवेश के नियम बनाए। ये नियम नीट की मूलभावना के पालन में बनाए गए।

इस नियम के उपनियम-6 में पात्रता को परिभाषित किया गया। जिसमें स्पष्ट लिखा गया है कि केवल मध्यप्रदेश के मूलनिवासी को ही एमबीबीएस-बीडीएस कोर्स में प्रवेश दिया जाएगा। इसके बावजूद इस प्रावधान का खुला उल्लंघन चिंताजनक है।

जनहित याचिकाकर्ता द्वारा अवगत कराया गया कि छत्तीसगढ़ के 17, उत्तरप्रदेश के 10 और राजस्थान के 2 मूलनिवासियों के बारे में पक्की जानकारी हासिल की गई है, जिन्होंने फर्जी तरीके से मध्यप्रदेश के मूलनिवासी प्रमाणपत्र हासिल कर मेडिकल-डेंटल सीटें ब्लॉक करने का खेल खेला। इस वजह से मप्र की प्रतिभाओं का शासकीय मेडिकल कॉलेज में दाखिले का हक मारा गया।
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