शिक्षकों को मिला यौन उत्पीड़ित बच्चों को एडमिशन कराने का टारगेट

भोपाल। प्रदेश में कई बार ऐसे मामले सामने आए हैं, जब यौन उत्पीड़न से पीड़ित बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। अभिभावक भय और सामाजिक कारणों की वजह से बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर देते हैं। यौन उत्पीड़न से पीड़ित ऐसे बच्चे स्कूल आएं और आगे की पढ़ाई जारी रखें, इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को इस काम का जिम्मा सौंपा है। विभाग ने प्रदेश के सभी जिला शिक्षा अधिकारियों और जिला परियोजना समन्वयकों को भी इस संबंध में निर्देश जारी किए हैं।

बनी रहे पढ़ाई की निरंतरता
जानकारी के मुताबिक हाल ही में बाल आयोग यह तथ्य सामने लाया था कि कई प्रकरणों में यौन उत्पीड़न से प्रभावित बच्चे परिस्थितिवश स्कूल छोड़ देते हैं। अगर पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस) अधिनियम के अंतर्गत किसी बच्चे के यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज होता है तो उसके परिजनों को परामर्श देकर यह प्रयास किया जाए कि पीड़ित बच्चे की पढ़ाई में निरंतरता बनी रहे।

मामले हों तो करें काउंसलिंग
शिक्षा विभाग ने इस संबंध में सभी स्कूलों को जिला शिक्षा अधिकारियों को कहा है कि अगर उनके जिले में इस तरह के मामले हों तो प्रभावित बच्चे के स्कूल में आने की निरंतरता को बनाए रखने के लिए पूरे प्रयास किए जाएं। विभाग की सचिव दीप्ति गौड़ मुकर्जी ने यह निर्देश दिए हैं कि सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण के दौरान भी शिक्षकों को इस दिशा में उन्मुखीकरण किया जाए। उनके मुताबिक ऐसे बच्चों और उनके परिजनों को परामर्श दिया जाएगा। स्कूलों को कहा गया है कि अगर उनके यहां इस तरह का कोई मामला प्रकाश में आया है तो इसे गंभीरता से लिया जाए, ताकि किसी बच्चे की पढ़ाई न छूटे।

प्रतिष्ठा के डर से छुड़वा देते हैं पढ़ाई
अधिकारियों के मुताबिक ऐसे बच्चे जिनका यौन उत्पीड़न हुआ है उनके अभिभावक सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर इसे देखते हैं। यही वजह है कि वे बच्चे की पढ़ाई तक छुड़वा देते हैं। उनके मन में भय व्याप्त हो जाता है। उन्हें लगता है कि अगर इससे उनकी छवि धूमिल हो सकती है। काउंसलिंग के माध्यम से उन्हें बताया जाएगा कि ऐसा कुछ भी नहीं है। वे बच्चे को पढ़ने जरूर भेजें ताकि उसका सर्वांगीण विकास हो सके। वे बच्चे को स्कूल न भेजकर उसके साथ ठीक नहीं कर रहे। जरूरत पड़ी संबंधित बच्चे के घर जाकर भी उन्हें परामर्श दिया जा सकता है।

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