जिन्ना ने 1945 जारी किया था अवैध नोट: जाहिर हो गए थे नापाक मंसूबे

भोपाल। आजादी से पहले ही मोहम्मद अली जिन्ना ने एक ऐसा नोट चलाया था जिसमें भारत के उन हिस्सों को कलर कर दिया गया था जिस पर पाकिस्तान अपना अधिकार समझता था। ये सब बहुत गुपचुप तरीके से 1945 में चला। ऐसा ही नोट वर्ल्ड म्यूजियम-डे के उपलक्ष्य पर ‘माय ओन कलेक्शन’ एग्जीबिशन में देखने को मिला। हिंदुस्तान जिस वक्त आजाद हो रहा था, उसी वक्त जिन्ना देश को दो मुल्कों में बांटने की योजना बना रहे थे। इससे पहले 1945 में ही जिन्ना लोगों को अपने मत में लाने के लिए गुपचुप तरीके से ऐसा नोट छाप रहे थे, जिसमें भारत में खास उस हिस्से को कलर किया गया है, जिस पर जिन्ना पाकिस्तान के तौर पर अपना अधिकार समझते थे।

नायाब चीजों का कलेक्शन
रीजनल साइंस सेंटर में वर्ल्ड म्यूजियम-डे के उपलक्ष्य पर ‘माय ओन कलेक्शन’ एग्जीबिशन लगाई गई। यहां देशभर से 20 कलेक्शन लवर्स ने हिस्सा लिया, जिसमें पुराने सिक्के, नोट, माचिस के डिब्बी, अलग-अलग रियासतों के वेट्स समेत नायाब चीजों का कलेक्शन देखने को मिला। इतिहास विद् नारायण व्यास पुरा-पाषाण काल से लेकर वर्तमान विकास के चरण तक के पदचिन्ह लेकर आए हैं। एग्जीबिशन में 15 लाख साल पुराने पाषाण कालीन हथियार लोगों को आकर्षित करते दिखे। भोपाल के पास बालमपुर घाटी से मिले पत्थर से बने औजारों में कुल्हाड़ी और भाल प्रमुख हैं।

फोल्डिंग गिलास से पिया जाता था पानी
फोल्डिंग अम्ब्रेला, फर्नीचर्स तो खूब देखे होंगे, लेकिन फोल्डिंग गिलास जैसी अनोखी चीज कम ही देखने को मिलती है। भोपाल के मो. शमीम हाशमी एग्जीबिशन में 125 साल पुरानी फोल्डिंग ग्लास, पानदान और चुनौटी का संग्रह लेकर आए हैं। सफर के लिए खासतौर पर बनाए जाने वाले यह गिलास पांच हिस्सों में फोल्ड हो जाता है, लेकिन इसके ज्वाइंट इतनी अच्छी तरह फिट हो जाते हैं कि पानी की एक बूंद इससे नहीं झलकते।

याद दिलाते हैं मेमोरियल पिलर्स
मानव संग्रहालय में मोरिया ट्राइब का मेमोरियल पिलर है, जिसे ‘बाइसन हार्न भारिया मेमोरियल पिलर’ कहते हैं। मोरिया जनजाति के लोग समाज के किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार जिस स्थान पर किया गया, वहां इस मेमोरियल पिलर को बनाते हैं। यह पिलर 1979 से भोपाल में है, लेकिन शहर के लोग इससे अभी तक अंजान हैं।

खास है 300 से ज्यादा पेन
सप्रे संग्रहालय में 300 से ज्यादा कलम (पेन) का कलेक्शन है। इसमें करीब 80 पेन पुराने जमाने की दवात वाले हैं। पहले यह दवातें कांसे से बनाई जाती थी, बाद में बर्रू के पेड़ की लकड़ी से यह पेन तैयार होने लगी, जिसे पेंसिल की तरह छीलकर बार-बार पैना किया जाता था। बर्रू कट भोपाली का जुमला सभी ने सुना होगा, जिन्हें पुराने शहर के लोग असल भोपाली कहते हैं। यह वही बर्रू है, जिससे दवात के पेन तैयार हुए। पहले भोपाल में बर्रू के ही पेड़ हुआ करते थे, जिन्हें काट कर लोग यहां बस गए। यही वजह रही कि इन लोगों ने खुद को बर्रू काट भोपाली कहा।

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