बढती विकास दर और खोती खुशियाँ

राकेश दुबे@प्रतिदिन। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतरराष्ट्रीय खुशहाली दिवस [20 मार्च ] के अवसर पर ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट-2017’ जारी की है। 155 देशों की इस सूची में भारत पिछले वर्ष की तुलना में चार पायदान फिसल कर 122 वें स्थान पर पहुंच गया है। इस रिपोर्ट में दुनिया का सबसे खुशहाल देश नार्वे बताया गया है। वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट, 2017 में सबसे निचले पायदान पर सीरिया और यमन हैं। खुशहाली की नई रैंकिंग के बाद हमारा देश खुशहाली के मामले में चीन, पाकिस्तान और नेपाल से भी पिछड़ गया है।

इस रिपोर्ट में चीन का 79 वां, पाकिस्तान का 80 वां, नेपाल का 99 वां, बांग्लादेश का 110 वां और श्रीलंका का 120 वां स्थान रहा| संयुक्त राष्ट्र संघ ने खुशहाल देशों की रैंकिंग करते समय जिन पैमानों को ध्यान में रखा है, उनमें प्रति व्यक्ति आय, सकल घरेलू उत्पाद, स्वास्थ्य, जीवन प्रत्याशा, उदारता, आशावादिता, सामाजिक समर्थन, सरकार और व्यापार में भ्रष्टाचार की स्थिति शामिल हैं।

विभिन्न देशों की खुशहाली से संबंधित इस रिपोर्ट के आधार पर कहा जा सकता है कि देश की जिस तेजी से विकास दर बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से लोगों की खुशियां नहीं बढ़ रहीं. यह कोई छोटी बात नहीं है कि नोटबंदी के बाद भी वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर-दिसम्बर, 2017 में विकास दर 7.1 फीसद बढ़ी और विश्व बैंक का कहना है कि वर्ष 2017 में सर्वाधिक विकास दर भारत की ही होगी। लेकिन बढ़ती विकास दर के दूसरी ओर देश के लोगों की सामाजिक सुरक्षा, शासकीय स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा की स्थिति चिंताजनक है| देश के 80 प्रतिशत से अधिक लोगों को सामाजिक सुरक्षा की छतरी उपलब्ध नहीं है।

आम आदमी के धन का एक बड़ा भाग जरूरी सार्वजनिक सेवाओं, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा में व्यय हो रहा है। इस कारण बेहतर जीवन स्तर की अन्य जरूरतों की पूर्ति में वे बहुत पीछे हैं। चूंकि तेज आर्थिक विकास ने करोड़ों भारतीयों में बेहतर जिंदगी की महत्त्वाकांक्षा जगा दी है, ऐसे में जब देश के करोड़ों लोगों को उपयुक्त सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ एवं शिक्षा सुविधाएं गुणवत्तापूर्ण रूप से नहीं मिल पा रही हैं, तो उनकी निराशाएं बढ़ती जा रही हैं। वैश्विक संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने एशिया प्रशांत क्षेत्र में भ्रष्टाचार और घूसखोरी का जो ताजा अध्ययन मार्च, 2017 में प्रकाशित किया है, उसमें भारत को सर्वाधिक घूसखोरी वाला देश बताया गया है। कहा गया है कि देश के 69 प्रतिशत लोगों को पिछले साल 2016 में सरकारी सेवाओं के उपयोग के लिए घूस देना पड़ी। ऐसे में हमें यह स्वीकार करना ही होगा कि देश में विकास का मौजूदा रोडमैप लोगों को खुशियां देने में बहुत पीछे है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !