संत की मृत देह पर किसका हो अधिकार: हाईकोर्ट ने पूछे सवाल

चंडीगढ़। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के संस्थापक आशुतोष महाराज के अंतिम संस्कार मामले पर सुनवाई के दौरान पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने टिप्पणी की, कि कौन-सा मौलिक अधिकार बेटे को अंतिम संस्कार का अधिकार देता है। हाई कोर्ट ने यह बात आशुताेष महाराज का पुत्र हाेने दावा करने वाले दलीप कुमार झा की याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। दिलीप ने याचिका में पिता के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करने की अनुमति मांगी है।

हाईकोर्ट ने पूछा है कि आखिर कौन-सा मौलिक अधिकार यह कहता है कि बेटा पिता के शव का अंतिम संस्कार करे यह अनिवार्य है। मामले की सुनवाई के दौरान दिव्य ज्योति जागृति और दलीप कुमार झा की आेर से दलीलें पूरी हो गईं। पंजाब सरकार की ओर से अपील की गई कि इस मामले में उनका पक्ष सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया रखेंगे। अब इस मामले पर सुनवाई 1 मार्च को होगी।

समाधि में हैं आशुतोष महाराज
सुनवाई आरंभ होते ही आशुतोष महाराज के समर्थकों के वकील ने दलीलें आरंभ कीं। कोर्ट से अपील करते कहा गया कि आशुतोष महाराज समाधि में हैं और समर्थकों का विश्वास है कि वह वापस आएंगे। यदि उनके शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया गया तो समर्थकों की भावनाएं आहत होंगी।

समाधि के विषय में कोर्ट फैसला नहीं कर सकता 
हाईकोर्ट ने इस पर स्पष्ट कर दिया कि कोर्ट समाधि के विषय में टिप्पणी नहींं कर सकता, क्योंकि समाधि के बारे में न तो कोई कानून है और न ही इसे संविधान का हिस्सा ही बनाया गया है। ऐसे में समाधि की स्थिति पर नहीं, बल्कि उनके शरीर को लेकर बहस करें।
इस पर कहा गया कि आशुतोष महाराज ने समाधि से पहले अपने समर्थकों को यह बता दिया था कि वह समाधि में जाएंगे और इस दौरान उनके शरीर को संरक्षित किया जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि अदालतें कानून और संविधान के अनुसार चलती हैं, इसलिए कानूनी प्रावधानों के तहत दलीलें दी जाएं।

सुनवाई के बाद संस्थान, समर्थकों व याचिकाकर्ता की दलीलें पूरी होने पर हाईकोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुरक्षित करना चाहा तो पंजाब सरकार ने कहा कि सरकार का पक्ष रखने के लिए सॉलिसिटर जनरल ने 1 मार्च तक का समय मांगा है। सरकार ने हाईकोर्ट से अपील की कि सरकार को पक्ष रखने के लिए 1 मार्च तक का समय दिया जाए। हाईकोर्ट ने अपील मंजूर कर सुनवाई 1 मार्च तक टाल दी।

संन्यासी वो जो सुख-सुविधाओं का त्याग करे, बुद्ध श्रेष्ठ उदाहरण
सुनवाई के दौरान संन्यासी शब्द पर हाईकोर्ट ने कहा कि वे किसी संस्थान विशेष को लेकर नहीं कह रहे हैं, लेकिन असल मेंं संन्यासी वह है जो सांसारिक सुख का त्याग कर जीवन जी रहे हैं। सुख-सुविधाओं से पूर्ण संन्यास कैसे हो सकता है। जस्टिस महेश ग्रोवर ने कहा कि महात्मा बुद्ध ने अपना अलग मार्ग चुना और सभी सुविधाओं से किनारा कर संन्यास के मार्ग पर चले। बुद्ध श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

हर प्रमाण मौजूद, साबित कर सकते हैं असल पुत्र है दलीप
दलीप कुमार झा की ओर से एडवोकेट एसपी सोई ने कहा कि आशुतोष महाराज के वाेटर पहचान पत्र में उनके पिता का नाम है वही नाम दलीप के दादा का भी है। इसके साथ ही एनडी तिवारी की तर्ज पर यदि आशुतोष महाराज और दलीप झा के डीएनए का मिलान करवा लिया जाए तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।

महाराज समर्थकों ने दी साई व स्वामी विवेकानंद की समाधि की दलील
समर्थकों के वकील ने कहा कि साई और विवेकानंद मामले में भी समाधि का उदाहरण मिलता है। उन स्थितियों में भी शरीर मृत अवस्था में था। आशुतोष महाराज की स्थिति भी इसी प्रकार की है और वह शीघ्र ही अपने शरीर में वापस लौटेंगे।

हाईकोर्ट ने उठाए तीन सवाल
1. आशुतोष महाराज ने समाधि ली और उनके कई समर्थक भी हैं। ऐसे में उनका कोई समर्थक सामने आए और उनकी भांति ही समाधि की स्थिति कोर्ट को दिखा दे। क्या ऐसा कोई अनुयायी है?
2. यदि आशुतोष महाराज समाधि में हैं तो उनके समर्थक उनसे अनुरोध करें कि वह पुन: अपने शरीर में आ जाएं। एक बार यह हो जाए चाहे उसके बाद दोबारा समाधि की स्थिति में चले जाएं। क्या ये संभव है?
3. समाधि की स्थिति से वापस आने के लिए क्या वही शरीर अनिवार्य है। क्या समाधि से वापस आने के बाद किसी अन्य शरीर में आत्मा का प्रवेश नहीं?

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