राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश में एक मुख्य सचिव का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है, आर एस वी पि नरोन्हा का। नरोन्हा जी को संविद सरकार में काम करने का मौका मिला था। उनके अनुसार “ऐसी की तैसी” का मतलब “ as it is” होता है। तो इस अर्थ के आलोक में भारत सरकार ने भ्रष्टाचार के साथ साथ बहुतों की ऐसी तैसी कर दी है, बड़े नोट बंद करके। इस शब्द का कोई कुछ भी अर्थ निकाले पर बोलचाल की भाषा में ऐसी तैसी तो हो गई है और बैंको का काम बढ़ गया।
भारत में व्यापक मुद्रा परिवर्तन का पहला वाकया हुमायूँ के जमाने में हुआ था। बक्सर के मैदान में एक बार हुमायूँ और शेरशाह सूरी का घमासान युद्ध चल रहा था। युद्ध में हुमायूँ बुरी तरह हार गया और उसे शेरशाह सूरी की सेना ने तीनों से घेर लिया। हुमायूँ अपनी जान बचाने के लिए युद्ध के मैदान से भागकर गंगा के किनारे आ पहुँचा। हुमायूँ ने अपने घोड़े को गंगा के अन्दर उतारने की बहुत कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। हुमायूँ को डर था कि यदि शत्रु सेना यहाँ पहुँच गई तो उसे गिरफ्तार कर लेगी। उसी समय निजाम भिश्ती अपनी मशक में पानी भरने के लिए गंगा के किनारे आया। निजाम बहुत अच्छा तैराक था। हुमायूँ ने निजाम को अपनी परेशानी से अवगत कराया। निजाम हुमायूँ को मशक पर लिटा कर गंगा पार कराना चाहता था। किन्तु हुमायूँ पहले तो मशक पर गंगा पार करना ही नहीं चाहते थे, लेकिन बाद में गंगा पार करने का और कोई रास्ता न देखकर उन्हें निजाम की बात माननी पड़ी।
निजाम ने कुछ ही देर में हुमायूँ को मशक पर लिटाया और तैरते हुए गंगा पार करा दी। बदले में भिश्ती को ढाई दिन की बादशाहत मिली। निजाम बादशाह ने वजीर से कहा ―'मैं टकसाल जाना चाहता हूँ।' वजीर निजाम बादशाह को टकसाल ले गया, जहाँ सिक्के बनते थे। उन्होंने तुरंत टकसाल में बनने वाले सिक्कों पर रोक लगा दी और चमड़े के सिक्के बनाने का काम तेजी से शुरू हो गया। दिन-रात चमड़े के सिक्के बनने लगे।
तब जन संख्या इतनी नहीं थी। आतंकवाद नहीं था। भ्रष्टाचार करने का लायसेंस और अवसर नवाब के अलावा किसी और के पास नहीं होता था। अब ये सब बीमारी है। नरेंद्र मोदी रिजर्व बैंक मे तैनात इससे पहले के गवर्नर रघु रामन से पूछते तो वे नये सवाल खड़े करते। अब के गवर्नर उर्जित पटेल है और उन्होंने एक रात नये सिक्के चलाने की जगह पुराने सिक्के बंद करने का निर्णय सुझाया। उर्जित पटेल अमेरिका से आये हैं और 9/11 का मतलब समझते है। उन्होंने 9/11 को भारत से बड़े नोटों को नौ दो ग्यारह करा दिया। आप चाहे कुछ भी कहें, अपनी वेदना को मुखौटे में छिपाए पर हुई तो ऐसी की तैसी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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