ऐसे में पुलिस से उम्मीद करना व्यर्थ है

राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश में कहीं भी पुलिस आतंकवादियों से हथियारों की कमी और उन्नत हथियारों के चलाने के मामले प्रशिक्षित नहीं होने के कारण बमुश्किल मुकाबले में उतर पाती है। सवाल यह है आधुनिक हथियार और उन्हें चलाने का प्रशिक्षण क्यों नहीं दिया गया। कुछ राज्य अब भी प्रशिक्षण के नाम पर जो कवायद कर रहे हैं, उसे विशेषग्य अपूर्ण मानते हैं। हाल यह है कि पुलिस थानों को भी मेकेनाइज्डप बंदूकें और स्मोनक ग्रेनेड्स इस्तेिमाल करने की इजाजत नहीं है। आम पुलिस यूनिफॉर्म में कहीं भी बुलेटप्रूफ जैकेटों का जिक्र नहीं है। 

ज्यादातर पुलिसकर्मियों के पास पुराने हथियार हैं, जो कि कभी मिसफायर करते हैं, तो कभी फायर ही नहीं करते। कांस्टेबल्स के पास दोनाली बंदूक होती है जो कभी भी धोखा दे सकती है। अधिकारियों को एक सर्विस पिस्टल मुहैया कराई जाती है। लेकिन पुलिस की सामान्य वर्दी में आत्मरक्षा के लिए कोई उपाय नहीं किया गया है। अगर किसी पुलिसकर्मी के पास ये जरूरी चीजें नहीं होगी तो हम उससे अपनी जान पर खेलने की उम्मी‍द कैसे कर सकते हैं?

अगर पुलिस कर्मचारियों को सेमी ऑटोमेटिक या ऑटोमेटिक मशीन गन मुहैया कराई भी गई हैं तो उन्हें चलाने की ट्रेनिंग नहीं दी गई। जबकि बचाव के लिए उन्हें यह सब जानकारी दी ही जानी चाहिए। जब आतंकवादी पुलिस पर एके-47 साधते हैं तो यह बताने की जरूरत नहीं कि गोलियां किसकी तरफ से ज्यादा चलेंगी। आतंकवादी हमले अब सिर्फ कश्मीेर या सीमा से सटे इलाकों तक ही सीमित नहीं है। पूरे देश में आतंक का खतरा है, ऐसे हालात में हर पुलिस थाने को आधुनिक हथियारों से लैस किया जाना चाहिए। साथ ही पुलिसकर्मियों को उन्हेंख चलाने की ट्रे‍निंग मिले, ताकि वे समय आने पर उसका उपयोग कर कई जिंदगियां बचा सकें।

यह चिंता आज की नहीं है है , सालों से व्यक्त की जा रही है |जब 2008 में मुंबई पर हमला हुआ था तो आतंकियों का सामना कर रहे कई पुलिसकर्मी अपनी रायफलें नहीं चला पा रहे थे। उस हमले में कम से कम 187 लोग मारे गए और कई घायल हुए। आठ साल के बाद भी हालात में कोई खास बदलाव नहीं आया। ऊपर से देश में पुलिसकर्मियों की संख्या बेहद कम है। 

संयुक्तल राष्ट्र के मानक के अनुसार प्रति लाख नागरिकों पर 270-280 पुलिसकर्मी होने चाहिए। भारत में यह आंकड़ा करीब 150 पुलिसकर्मी प्रति लाख व्यक्ति है। कम संख्या और हथियारों में कमी जैसे गंभीर आभाव के रहते कैसे उम्मीद करें,की  पुलिस कुछ करेगी। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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