शहडोल। यहां एक व्यक्ति की कहानी को मार्मिक मोड़ देकर समाज को दोष दिया जा रहा है। इस कहानी में समाज को क्रूर और एक ऐसे व्यक्ति को मासूम बताया जा रहा है जिसने अपने पिता का अंतिम संस्कार नहीं किया। स्वस्थ और सक्षम होने के बावजूद रोजगार नहीं किया। बीमार पत्नी का इलाज नहीं कराया जिससे वो तड़प तड़प कर मर गई। मामला शहडोल जिले के ग्राम पंचायत गोरतरा का है।
यहां से शुरू होती है कहानी
जिसे पीड़ित बताया जा रहा है उसका नाम रामसिंह केवट है। करीब डेढ़ साल पहले उसके पिता की मृत्यु हो गई थी परंतु तब रामसिंह अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल तो हुआ परंतु केशदान करने से इंकार कर दिया। दलील की कि उसने बाल-दाढ़ी नहीं बनवाने का संकल्प लिया है। गांववालों को यह दलील समझ नहीं आई और उन्होंने रामसिंह से अपने सभी रिश्ते तोड़ लिए। रामसिंह को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। वो अपनी पत्नी और 15 साल की बेटी के साथ जीवन यापन करता रहा।
रामसिंह केवट ना तो विकलांग है और ना ही बीमार। समाज और व्यवस्था से जूझने की क्षमता भी कम नहीं है। फिर भी वो कोई खास रोजगार नहीं करता था। पिछले दिनों उसकी पत्नी सोनियाबाई (38) की तबीयत खराब हो गई। रामसिंह ने उसका उचित इलाज नहीं कराया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। अब रामसिंह चाहता था कि जैसे पिता के समय सारा गांव जमा हो गया था, पत्नी के समय भी हो जाए परंतु अपने सामाजिक धर्म ना निभाने वाले रामसिंह केवट के साथ कोई नहीं आया। पत्नी के मायके से जरूर सोनियाबाई का भाई व एक अन्य पहुंचे। ग्रामीणों को संदेह था कि कहीं रामसिंह ने सोनियाबाई के साथ कुछ आपराधिक कृत्य तो नहीं किया।
इसलिए ग्रामीणों ने पुलिस को सूचना दे दी। पुलिस ने शव अपने कब्जे में लिया और पोस्टमार्टम की प्रक्रिया शुरू कर दी। इस दौरान भी रामसिंह केवट विषय को दूसरी तरह से प्रस्तुत करता रहा। कुछ अति उत्साही मीडियाकर्मियों ने उसकी कहानी को जैसा का तैसा प्रस्तुत भी किया। कलक्टर से सवाल भी कर लिए गए। इधर ग्रामीणों का कहना है कि जो व्यक्ति सामाजिक परंपराओं को पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने से इंकार करता हो, उसे सामाजिक सहयोग कैसे दिया जा सकता है।