राकेश दुबे@प्रतिदिन। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने वाला विधेयक पेश होना तथा दूसरी ओर राष्ट्रपति ओबामा द्वारा संयुक्त राष्ट्रसंघ में नाम लिए बिना पाक को छद्म युद्ध बंद करने की चेतावनी ऐसी घटनाएं हैं, जिसकी उम्मीद पाक को कतई नहीं रही होगी। पाक कहां तो संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दा को सतह पर लाना चाहता था, लेकिन महासचिव बान की मून ने अपने भाषण में उसका जिक्र तक नहीं किया और दूसरी ओर उसके सिर पर अमेरिका के कूटनीतिक हथौड़े पड़ने आरंभ हो गए।
उरी हमले के बाद भारत के अंदर पैदा हुए माहौल को ध्यान में रखते हुए ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाक के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को मिलने का समय नहीं दिया। विदेश मंत्री जॉन कैरी मिले भी तो उन्होंने नसीहत दे दी कि वह आतंकवाद को समर्थन देना बंद करे तथा अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए न होने दे। अमेरिका का यह रुख पाक के लिए जहां बड़ा झटका है, वहीं भारत के लिए कूटनीतिक सफलता।
हालांकि हम इतने से कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाल सकते, लेकिन तत्काल यह तो मान ही सकते हैं कि भारत जो चाहता है, उस दिशा में दुनिया से उसे प्रतिक्रिया मिल रही है। प्रतिनिधि सभा के टेड पो नामक जिन सांसद महोदय ने एक अन्य सांसद डाना रोहराबेकर के साथ पाक स्टेट स्पॉन्सर ऑफ टेररिज्म डेजिगनेशन एक्ट पेश किया, वे सदन के आतंकवाद पर बनी सब-कमेटी के अध्यक्ष भी हैं।
उनके अनुसार हम पाक को उसकी दुश्मनी निकालने के लिए पैसा देना बंद कर दें। उसे वह घोषित कर देना चाहिए जो वह है. यानी वह आतंकवादी है और यह घोषित होना चाहिए। दूसरे, उन्होंने कहा कि भारत हमारा एक करीबी सहयोगी है।
इस विधेयक के पेश होने के बाद राष्ट्रपति ओबामा को 90 दिन में रिपोर्ट देनी होगी कि पाक अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को समर्थन देता है या नहीं। इसी पर विधेयक की नियति निर्भर करेगी। यह विधेयक पारित हो या न हो, लेकिन भारतीय कूटनीति ने अमेरिका को यहां तक ला दिया है तो कम से कम इसका कुछ परिणाम अवश्य आएगा और जो आएगा वह पाकिस्तान के पक्ष में नहीं होगा। हमें इसे एक शुरुआत मानकर अपनी मुहिम को आगे बढ़ाने पर डटे रहना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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