डिप्टी रेंजर की अंतिम इच्छा: बेटे नहीं, सफाईकर्मी करें मेरा अंतिम संस्कार

दमोह। यहां एक रिटायर्ड डिप्टी रेंजर ने अपने बेटों की बेरुखी से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। सुसाइड नोट में उन्होंने अंतिम इच्छा जताई कि मेरे बेटों को मेरे शव से हाथ भी ना लगाने दिया जाए। मेरा अंतिम संस्कार नगरपालिका के सफाईकर्मी करें और अपनी सारी संपत्ति उन्होंने सरकार के नाम कर दी। पुलिस एवं प्रशासन की सुरक्षा बंदोबस्त में उनकी अंतिम इच्छा पूरी की गई। 

यह है पूरा मामला
दरअसल, मंगलवार को दमोह की देहात थाना पुलिस को जीआरपी ने खबर की कि रेलवे ट्रैक के नजदीक एक लाश पड़ी है। पुलिस मौके पर पहुंची तो एक 65 साल के व्यक्ति की ये लाश थी। मृतक के जेब से जो दस्तावेज मिले, उसके मुताबिक़ ये लाश हरिशंकर गुप्ता नाम के शख्स की थी। लेकिन, इन कागजों में एक सुसाइड नोट भी मिला, जो चौंकाने वाला था। 

क्या लिखा था सुसाइड नोट में
हरिशंकर ने इस सुसाइड नोट में कलेक्टर दमोह को लिखा था कि  उसका अंतिम संस्कार उसके बेटों से न कराया जाये, बल्कि नगरपालिका के स्वीपर्स करें। दमोह पुलिस के लिए एक मृतक की आखिरी ख्वाइश पूरा करना जरुरी था, लिहाजा जिला प्रशासन ने इसको लेकर कार्रवाई की और फिर नगरपालिका के स्वीपर्स ने जिला अस्पताल के मॉर्चरी में रखी लाश को ट्रैक्टर ट्रॉली में रखा और श्मशान घाट लेकर पहुंचे। बता दें कि अक्सर श्मशान घाट में नगर पालिका के ये स्वीपर्स इस तरह लाशों को लेकर पहुंचते हैं, लेकिन इस बार ये लावारिश लाश नहीं थी, बल्कि मरने वाले के बेटे भी थे। मगर स्वीपर्स की मजबूरी थी। उन्हें पुलिस थाने से मिले आदेश की तामील करनी थी और चिता के सामने खड़े बेटों को वो अंतिम संस्कार करने से रोकते रहे।

आखिर एक बाप ने ऐसा क्यों किया
हरिशंकर गुप्ता दमोह के वन विभाग में डिप्टी रेंजर थे और पांच साल पहले रिटायर्ड हुए थे। नौकरी से रिटायर्ड होने के बाद वो अपने ही घर में बेगानों की तरह अकेले रहते थे। कुछ सालों पहले पत्नी की मौत के बाद उन्होंने एक छत के नीचे रहने के बाद भी अपने बेटों से दूरी बना रखी थी। उनकी चार बेटों में से एक की मौत हो चुकी है। तीन अभी भी जिंदा हैं। बेटों ने ध्यान नहीं दिया था तो एक लाचार बाप अकेले ही रह रहा था और मंगलवार को ट्रेन के नीचे आकर उसने जान दे दी। लेकिन, जाने से पहले वो कुछ ऐसा कर गया जिसने सबको हिला कर रख दिया। 

संपति कर दी सरकार के नाम
गुप्ता ने न सिर्फ अपने अंतिम संस्कार से बेटों को बेदखल करने की बात लिखी, बल्कि अपनी तमाम जायजाद को सरकारी रूप से जनहित में लगाने की बात भी लिखी है। हालांकि, पिता की मौत की खबर मिलने के बाद उनके तीनों बेटे सक्रीय हुए और श्मशान घाट पर भी पहुंचे। लेकिन, हरिशंकर की अंतिम इच्छा के कारण उसका अंतिम संस्कार नगरपालिका के कर्मचारियों ने ही किया। 

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