
समिति की जांच के दौरान सामने आया कि हेडाऊ बंधुओं ने 1992 में भोपाल की हुजूर तहसील से अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र बनाए थे। जबकि हेडाऊ बंधु छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्ना गांव के रहने वाले हैं। दोनों ने कक्षा पहली से बारहवीं की पढ़ाई भी छिंदवाडा़ से ही की है। 1992 में जब यह प्रमाण पत्र बना तब दोनों बारहवीं कक्षा में थे और छिंदवाड़ा में निवास कर रहे थे। प्रमाण पत्र बनवाते समय इन्होंने खुद को हल्बा जाति का होना बताया था। जबकि भोपाल यह जाति पाई ही नहीं जाती। प्रमाण पत्र में दिया गया भोपाल का पता भी जांच में फर्जी मिला है। इतना ही नहीं दोनों प्रमाण पत्र तहसीलदार कार्यालय द्वारा एक ही डिस्पैच नंबर से जारी किए गए।
हेडाऊ जाति मूलरूप से महाराष्ट्र की है। जो कोष्ठा या कोष्ठी है। इन्होंने कोष्ठा के आगे हल्वा लिखकर फर्जी अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र हल्वा नाम से बनवाए हैं। वर्ष 2000 में शासन द्वारा हल्वा और हल्वी जाति को लाभ नहीं देने के निर्देश भी जारी किए थे। ऐसे में अफसरों ने बिना छानबीन किए ही 2003 में दोनों को सहायक संचालक के पद पर नियुक्ति दे दी।